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भारत में लेखन-कला की प्राचीनता और सबसे
- प्राचीन लिपि की उत्पत्ति
I. भारतीय परम्परा भारतीय आस्तिक और नास्तिक दोनों संप्रदायों में जो परंपराएं उपलब्ध हैं उनमें लेखन-कला, कम-से-कम मुख्य लिपि के आविष्कार का श्रेय ब्रह्मा को दिया गया है । इस प्रकार इन परंपराओं में लेखन-कला को राष्ट्रीय आविष्कार माना गया है और इसे अत्यंत प्राचीन कहा गया है। ब्रह्मा से उत्पत्ति की बात मनुसंहिता के नूतन संस्करण नारद-स्मृति (620 ई० में बाण ने इसका उल्लेख किया है), मनु पर बृहस्पति के वार्तिक, युवाङ् च्वाङ्' तथा जैनों के समवायांग सूत्र (परंपरा से प्राप्त तिथि ई० पू० 300) में मिलती है। समवायांग सूत्र की ही कथा पण्णावणा सूत्र (परंपरा से प्राप्त तिथि ई० पू० 168) में भी दुहराई गई है। बादामी में ब्रह्मा की एक मूत्ति मिली है जिसका समय लगभग 580 ई० है। इसमें ब्रह्मा के एक हाथ में ताड़-पत्र हैं । बाद की मूत्तियों में ताड़पत्र के स्थान पर कागज मिलता है जिसमें लिखावट दिखलाई गई है। इन मूर्तियों में भी इसी कथा की ओर संकेत है।
ब्रह्मा से उत्पत्ति की यह कथा विशेषकर उस भारतीय लिपि के संबंध में है जो बायें से दायें की ओर लिखी जाती है। चीन के बौद्ध ग्रंथ फवाङशुलिन में यह सारी-की-सारी कथा मिलती है। वहाँ ब्रह्मा को फाङ कहा गया है। ऊपर उल्लिखित दोनों जैन-ग्रंथों तथा ललितविस्तर में सबसे महत्वपूर्ण
1. बु, इ. स्ट. III, 2, 23-35 मिला. एनेक्डोटा औक्सेन, आर्यन सिरीज, I, 3, 67; ब, ए. सा. इ. पै. 6; ए. ल्युडविग, यवनानी; सिट्ज. बेर, व्युम, गेस, डी. विस्स. 1893, IX और डा० बर्नेल द्वारा उद्धत रचनाएं।
2. सै. बु. ई. 23, 58 तथा आगे 3. सै. ब्रु. ई. 23, 304 4. सियुकि 1, 77 (बील)
5. वे, इं. स्ट. 16, 280, 399 6. इं. ऐ. 6, 366 फलक 7. मूर, हिन्दू पैंथियन, फल० 3, 4; ए. रि. 1, 243 8. ब. ओ. रे. 1, 59 9. संस्कृत पाठ 143 (बिब्ल. इंड.) और 308 ई० का चीनी अनुवाद
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