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पृष्ठांकन
१८९ नहीं--एक छोटा-सा वृत्त या बिंदु484 मिलता है जिसका इस्तेमाल आज भी संक्षिप्तियों के प्रकट करने के लिए होता है, उदाहरणार्थ ठ° या 8. ठक्कर । यही चिह्न प्राकृत के हस्तलिखित ग्रंथों में एक या अनेक ऐसे अक्षरों के लोप के लिए इस्तेमाल में आता है जिन्हें आसानी से पूरा किया जा सकता है, उदाहरणार्थ, अतभत्रं--अत्तभवं, दि°ठा= दिट्ठा485 ।
उ. पृष्ठांकन हिंदुओं में हस्तलिखित पोथियों में पत्रों की ही संख्या लिखने की परंपरा है। द्रविड़ प्रदेश में प्रत्येक पत्र के पहले पृष्ठ पर यह संख्या लिखी जाती है जब कि भारत के अन्य भागों में पत्रे की संख्या दूसरे पृष्ठ (साँकपृष्ठाः ) 486 पर देने की प्रथा है। यही नियम ताम्रपट्टों पर भी लागू है । ताम्रपट्टों पर कभी-कभी (पर बिरले ही) संख्या देते हैं ।487
उ. मुद्राएं धर्मशास्त्रों488 के अनुसार सभी शासनों पर राजा की मुद्रा अवश्य होनी चाहिए। इसलिए अधिकांश दान-पत्रों को पट्ट के साथ ही वेल्डिंग करके या उसके छल्लों के साथ या उनसे कीलें लगाकर मुद्राएं लगी रहती हैं। इनमें राजा का कुल-चिह्न (प्रायः कोई जानवर या देवता की शक्ल) या ऐसे चिह्न के साथ लघु वा दीर्घ अभिलेख होता है जिसमें राजा का नाम या राज-वंश के आदि-पुरुष का नाम या उसका पूरा पितृ-वंश या कभी-कभी केवल एक अभिलेख होता है ।489
484. देखि. उदाहरणार्थ इ.ऐ. VI, 194; सं. 4; ए. इं. 317, पंक्ति 9.
485. मिलाइए पण्डित, मालविकाग्निमित्र, II, 5 जो बर्नेल की भाँति दि° ४ = दिछा कहते हैं, देखि. पिशेल, Nachr. Gott. Gel. Ges., 1873, 206. ___486. इसके एक स्पष्ट अपवाद के लिए देखि. वी. त्सा. कु. मो. VII, 261.
487. मिला. उदाहरणार्थ, ब. ए. सा. ई. पै. फल. 24; ए. ई. I, 1; III, 156, 300 की प्रतिकृतियाँ ।
488. जॉली, Recht tund Sitle, Grundriss, II, 8, 114
489. मिला. उदाहरणार्थ ब. ए. सा. इ. पै. 16 की मुद्राएं और ए. ई. III, 104; IV, 244; और फ्ली. गु. ई. (का. इं. इं. III) फल. 30, 32, 33,37,43.
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