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भारतीय पुरालिपि-शास्त्र
वृहत् गद्य खंडों और प्रलेखों449 के अंत में यही चिह्न आता है। 5वीं शती से पहली लकीर के सिरे पर एक हुक लग जाता है । इस प्रकार यह चिह्न हो जाता है 4:01 या दोनों लकीरों में ऐसे जोड़ लगते हैं, जैसे 451 । एक या दोनों लकीरों के नीचे भंग या हुक लगते हैं । 452 8वीं शती के अंत से बाईं ओर पहली लकीर के मध्य में एक डंडा लगता है। फिर चिह्न हो जाता है । 1453 पूर्वी चालुक्यों के अभिलेखों में डंडे लकीरों के सिरों पर लगते हैं, जैसे । कलिंग के एक अभिलेख में चिह्न मिलता है 454 1
3. तीन लकीरें बनाना कभी-कभी अभिलेख की समाप्ति का सूचक होता है ।455
. अशोक के धौली और जौगड़ के आदेशलेखों में लेख का अंत बतलाने के लिए अंतिम पंक्ति के प्रथम चिह्न के नीचे बाईं ओर एक छोटी-सी आड़ी लकीर बनी है। ई. पू. दूसरी शती से 56 ईसा की 7वीं शती तक यह चिह्न जो बहुधा भंग रूप में मिलता है या इसके एक किनारे हुक होता है, खड़ी लकीर का काम करता है।4:7
5. दो खड़ी लकीरों के स्थान पर पहली से आठवीं शती तक दो आड़ी
449. देखि. उदाह. प्रतिकृति वही. सं. 26, फल. 16, 1. 24; सं. 33,
फल. 21B, 1, 9. 450. , , , वही सं. 17, फल. 10, 1. 32, 1. 38; सं. 35,
फल. 22, अंतिम पंक्ति; बावर की प्रति में
सर्वत्र, 451. , , ,
नेपाल अभिलेख, सं. 4, इं. ऐ. IX, 168,
अंतिम पंक्ति. 452. " " "
इं. ऐ. IX, 100, अंतिम पंक्ति. 453.
, इं. ऐ. XII, 202, I, 1 के आगे; XIII, 68 454. देखिए ए. ई. III, 128, अंतिम पंक्ति
· इं. ऐ. VII, 79. 456. नानाघाट अभिलेख, ब, आ. स. रि. बे. इं. 5, फल. 5I. पंक्ति 6 में वनो के उपरांत ।
457. देखि. उदाहरणार्थ, प्रतिकृति, नासिक सं. 11 A, B, में सिद्धम और सिद्ध के उपरांत; फ्ली.गु.ई. (का.इं. ई. III) सं. 1, अंत में, सं. 3, फल. 28, 9, फल. 4 D, और 10 फल. 5
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455.
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