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भारतीय पुरालिपि-शास्त्र कभी-कभी सिक्कों पर पंक्तियाँ खड़े बल मिलती हैं विशेषकर कुषानों और गुप्तों के सिक्कों पर 1431 संभवतः इसकी वजह स्थान की कमी रही होगी ।
आ. शब्द-समूह आधुनिक काल में लिखने का तरीका यह है कि जब तक बात, छंद, या छंद का पद खत्म न हो पंक्ति के अखीर तक लिखते चले जाते हैं। प्राचीन काल में भी यही परंपरा थी। पर इसके अलावा पुराने से पुराने प्रलेखों में, जैसे अशोक के कतिपय आदेश लेखों में 112 ऐसे उदाहरण भी मिल जाते हैं, जहाँ एक ही वर्ग के शब्द या शब्द-समूह तोड़ दिये गये हैं। ऐसा भाव की दृष्टि से किया गया है या लिपिक के पढ़ने के ढंग की वजह से । आंध्रों और नासिक के पश्चिमी क्षत्रपों के कतिपय गद्य अभिलेखों में ऐसे ही शब्द-समूह मिलते हैं। मिला. अभिलेख सं. 5, 11 A, B और 13 । बाद के छंदोबद्ध अभिलेख अधिक सतर्कता से लिखे गये हैं। इनमें पदों के बीच में प्रायः खाली जगह 33 छोड़ दी गयी है। प्रत्येक पंक्ति में छंदार्ध या पूरा छंद ही लिखा गया है । 434
इसी प्रकार खोतन के खरोष्ठी धम्मपद में प्रत्येक पंक्ति में एक गाथा लिखी गयी है और पादों को अलग करने के लिए रिक्त स्थान छोड़ दिया गया है। दूसरे प्राचीन हस्तलिखित ग्रंथों में; जैसे बाबर की प्रति में शब्द और शब्द-समह प्रायः, अलग-अलग लिखे गये हैं। स्पष्ट ही इसके पीछे कोई सिद्धांत न था। ___ अभिलेखों में मङ्गल, विशेषकर जब इसके लिए केवल सिद्धम् शब्द ही लिखते थे, अकेले ही हाशिये में रहता है ।135
इ. विरामादि चिह्न430 खरोष्ठी के अभिलेखों में विरामादि चिह्नों का इस्तेमाल नहीं होता। किन्तु
431. ज. रा. ए. सो. 1989, फल. I; न्यू. क्रानि. 1893, फल. 8-10.
432. स्तंभ लेखों में (प्रयाग को छोड़कर), कालसी आदेशलेख सं. I-XI (देखि. ए. ई. II, 524 में प्रतिकृति) और निग्लीव और पड़ेरिया में।
433. मिला. उदाहरणार्थ पली. गु. इं. (का. इं. ई. III) सं. 50, फल. 31. B; अजंटा सं..1; घटोत्कच अभिलेख आदि की प्रतिकृतियों से ।
431. उदाहरणार्थ फ्ली. गु. इं. (का. इं. ई. III) सं. 1. 2, 6, फल. 4 A और 10 फल, 5. की प्रतिकृतियों से मिला..
435. वही सं. 6, फल. 4 A, और 15, फल. 9 A 436. मिला. ब., ए. सा. इं. पै. 82, $ 3.
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