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संख्यांक-लेखन
१७५ 16=(क) अष्टि (वरा., बेरू.) एक छंद जिसमें प्रत्येक पद में 16 वर्ण होते हैं; (ख) भूप आदि (वरा.,बेरू.) 418; (ग) कला (ब्राउ.) =चन्द्रमा की कलाएं। ____17 से 19==अत्यष्टि (बेरू.), धृति, अतिधृति (वरा. बेरू.), ये छंद हैं जिनमें क्रमशः 17 से 19 वर्ण होते हैं।
20 = (क) कृति (वरा., बेरू.), प्रत्येक पद में 20 वर्णों का एक छंद; (ख) नख (वरा., बेरू.)।
21 = (क) उत्कृति (बेरू.); 417 (ख) स्वर्ग (ब्राउ.) । 22 =जाति (ब्राउ.) (?)। 23 =विकृति प्रत्येक पद में 23 वर्णोंवाला एक छंद । 24=जिन (वरा., बेरू.) । 25 तत्त्व (बेरू.), सांख्य के सिद्धांत । 26=उत्कृति (वरा.), एक छंद जिसके प्रत्येक पद में 26 वण होते हैं । 27=भसमूह (ज्यो.), नक्षत्र (ब्राउ.) । 32 =दंत आदि (वरा., ब्राउ.)। 33==सुर अर्थात् देवता आदि । 40 नरक (वरा., पञ्चसिद्धान्तिका, 4, 6)। 49=तान (ब्राउ.)
ज्योतिष और बख्शाली हस्त. प्रति के गणित अंश में एक संख्या के लिए एक ही शब्द का प्रयोग मिलता है।
पिंगल और छंदशास्त्र के अन्य ग्रंथों में संख्यावाची शब्द (कभी-कभी सामान्य संख्याओं के साथ भी) प्रायः द्वन्द्व समास बनाते हैं जिनका विच्छेद 'वा' से करना चाहिए । जैसे वेदतुसमुद्राः का अर्थ 4 या 6 या 4 है।
वराहमिहिर तथा अन्य खगोल शास्त्रियों के ग्रंथों में हमें शब्द संख्याओं वाले (चाहे स्वतंत्र शब्द हों या संख्याओं के साथ) इससे भी लंबे द्वन्द्व समास मिलते हैं, जिनका विच्छेद 'और' लगाकर करते हैं। इन्हें दाएं से बाएं को पढ़ने से अभीष्ट संख्या प्राप्त होती है ।18 जैसे, पञ्चसिद्धान्तिका, 4, 44 में :
416. महाभारत VII, 65-71 के षोलशराजकीय पर्व में वर्णित।
417. संभव है : प्रकृति के लिए गलती से लिखा गया है, प्रकृति छंद के प्रत्येक पद में 24 वर्ण होते हैं ।
__418. वर्नेल के मतानुसार कतिपय आधुनिक अभिलेखों में संख्यांक उसी प्रकार लिखे जाते हैं जैसे दाशमिक संख्याएं ।
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