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भारतीय पुरालिपि - शास्त्र
1464 के चिह्न से )
से (मिला. बे. के सं. ; हृ ( मिला. बे. के सं. 1645, और आगे के चिह्न से ) या ह्व (XXIII ) से भी प्रकट करते हैं ।
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6 = फ्र (XIX, XXI, XXVI346; भ., बे.) या फु ( की. ) । इसे जान-बूझकर अलग करने से फुं या फ्रु (XXIV; की. ) से ; पुराने फ के एक गलत निर्वचन से, ध (XXII) से भी; अनुच्चारित व्यंजन के विभाषा - गत कोमलीकरण से, भ्र (XXIII; मिला. बे. पृ. LIV) से व्यक्त करते हैं ।
7 =ग्र (XIX, XXI, XXVI; भ. ) या ग्रा ( XXV; बे., भ., की. ) । इसे ही जानबूझ कर भेद करने और 'रेफ' की लकीर के गलत निर्वचन से ग्र्गा (XXIV; पी.) से ; ग के गलत निर्वचन से अ से (XX; मिला. बे. पृ. LIV) या ञ ( XXIII, मिला. बे. पू. LIV) से प्रकट करते हैं ।
8=
ह्र (XIX,
XXI, XXIII, XXVI; बे., भ. अंशतः 'रेफ' की लकीर को ह के हुक में जोड़ कर ) या ह्रा (XXV; बे. भ. की. ) । जानबूझ कर अलग करने से ह्र (की. ) या ह्र से भी प्रकट करते हैं । 9 = ओ (XIX, XXI,XXIII,
XXIV, XXVI; बे., भ. )
या ओंम् (XXV; की. ) |
10= (XIX) जो प्राचीन ठू
(स्त. IV - V ) में ठ के वृत्त के खुलने से बना है । इसे ही डा (XX, XXIII, बे. भ. ) से जो पुराने ळ ( स्त. X, XI ; मिला. इं. ऐ. 6, 47 ) का नेपाली प्रतिनिधि है, प्रकट करते हैं । यह नेपाली ळ भी थू से निकला है । विशेषकर नागरी में इसे ळ को गलत ढंग से लिखने के कारण ळ् (XXI, XXV, XXVI; भ., की. ) से और जानबूझ कर अलग करने से ऴ (XXIV; की. ) से भी प्रकट करते हैं ।
20 = थ 387 या था ( XIX - XXI, XXIII, XXIV, XXVI; बे., भ., की. ) या जानबूझ कर भेद करने से थे और र्था (XXV; की. ) से भी प्रकट करते हैं ।
30=ल या ला (XIX, XXI, XXIII, xxIV, XXVI;
386. फ के लिये मिला. फल. VI, 36, V. I
387. बावर की प्रति में भी साधारणतया । पीटरसन का घ पुराने थ के गलत पाठ के कारण हैं ।
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