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तमिल-लिपि
१५१ पूर्ण खोज की है। 365 इसका एक बड़ा अंश सातवीं शती की तमिल लिपि और भाषा में है। उनकी इस खोज से उपर्युक्त अनुमान की पुष्टि होती है । इन पट्टों की तमिल-लिपि ग्रंथ से आंशिक रूप में ही मिलती है। इसके अनेक अक्षरों में उत्तरी लिपियों की विशेषताएं मिलती हैं । ___ खास ग्रंथ-रूप उ (फल. VIII, 5, XVI; मिला. फल. VII, 4, XXIV); ओ (फल. VIII, 9, 16, मिला. स्त. XV); त (फल. VIII, 25-28, XVI, मिला. फल. VII, 22, XXIV); न (फल. VIII, 29, XVI, मिला . फल. VII, 26, XXIV); य (फल. VIII, 35, XVI; मिला. फल. VII, 32, XXIV); कु की उ की मात्रा (फल. VIII, 14, XVI; मिला. 44, XIII); ए की मात्रा, ते, फल. VIII, 28, XVI में, मिला. खे, फल. VII, 9, XXIV) और विराम के लिए खड़ी लकीर में मिलते हैं। विराम की लकीर स्वरहीन व्यंजन के ऊपर किंतु हलंत न और र के दाएं रहती हैं (मिला. ङ, फल. VIII, 15, XVI; म्, 34; ळ 43; न 49 ) । तमिल ऐ की मात्रा (उदाहरणार्थ नै, फल. VIII, 29 XVI) ग्रंथ ऐ से निकला एक अनोखा रूप है । इसमें दोनों मात्राएं एक-दूसरे पर नहीं बल्कि एक के पीछे दूसरी लगी हैं। _ हूबहू वही या यत्किचित परिवर्तित उत्तरी रूप इन अक्षरों में मिलते हैं : अ और आ में (फल. VIII, I. 2. XVI), इनमें एक ही खड़ी लकीर है जिसके नीचे भंग नहीं है (मिला. फल. IV, 1, 2, I तथा आगे) और बाईं
ओर फंदा है, जो अभी हाल में मिले स्वात के अभिलेखों तथा ग्रंथ लिपि में मिलता है; क में (फल. VIII, 11-14, XVI; मिला. फल. IV, 7, I तथा आगे); च में (फल. VIII, 16-18, XVI; मिला. फल. III, 11, III); ट में (फल. VIII, 20-22, XVI; मिला. फल. IV, 17, VII, VIII); 4 में (फल. VIII, 30-33, XVI; मिला. फल. IV, 27, I तथा आगे); र में (फल. VIII, 36, XVI; मिला. फल. IV, 33, I तथा आगे); ल में (फल. VIII, 37, XVI; मिला. फल. IV, 34, VII तथा आगे); उ की मात्रा में जैसे, पु, मु, यु, वु (फल. VIII, 32, 40, XVI; मिला. फल. IV, 27, II) और रु में (फल. VIII, 36, XVI, मिला. फल. IV, 33, III); और ळू
355. सा. ई. ई. I, 147; मिला. II, फल. 12; बल्लम् गुफा अभिलेख वही, 2, फल. 10 के अक्षर हूबहू ऐसे ही हैं।
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