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ग्रंथ - लिपि
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आखिरी उदाहरण बादामी अभिलेख है । फ्लीट की ताजी खोजों 345 से पता चलता है कि यह लेख पल्लव नरसिंह प्रथम ने 626 से 650 के बीच चालुक्य पुलकेशिन द्वितीय (ई. 609 और लग. 642 ) के विरुद्ध अपने अभियान के बीच खुदवाया था । ऐसा प्रतीत होता है कि इसके शीघ्र ही बाद इसका प्रचलन बंद हो गया, क्योंकि नरसिंह के बेटे परमेश्वर प्रथम के कूरम पट्टों के अक्षर इससे काफी विकसित हैं । जावा के जंबू नामक स्थान से मिले पत्थर पर खुदे अभिलेख में भी इस लिपि के दर्शन होते हैं । ( देखि. इं. ऐ. IV, 356 ) 1
पुरागत ग्रंथ-लिपि के अक्षर सामान्यतया पुरागत तेलुगू- कन्नड़ के अक्षरों से मिलते-जुलते हैं (दे. ऊपर 29 अ ) । किंतु उनकी कुछ निजी विशेषताएं भी हैं जो उत्तरकालीन विभेदों में सदा मिलती हैं, जैसे :
1. थ -- इसकी बीच की बिंदी फंदे में बदल गई है जो दाईं ओर को जुड़ता है ( फल. VII, 23, XXI ) ; इसे स्त. XX के थ से मिलाइए, जिसमें तेलुगू - कन्नड़ की सीधी लकीर दीखती है ।
2. श - इसकी अर्गला भंग या फंदे में बदल गई है और जो दाईं ओर को जुड़ती है ( फल. VII, 36, XX XXII, 45, XXII ) ; ऊपर 28, अ, 7 में उल्लिखित घसीट श से भी तुलना कीजिए ।
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3. ष -- - इसकी अर्गला की भी वही परिणति है ( फल. VII, 37, XX)। स्त. XXI के ष से मिलाइए। जिसमें इससे पुराना रूप मिलता है ।
फलक VII के स्त. XX और XXI के अक्षरों से पल्लवों के उन प्राकृत अभिलेखों का घना संबंध नहीं है जिनकी चर्चा ऊपर 20, ई में की गई है ।
आ. मध्य विभेद
पुरात से काफी अधिक विकसित दूसरा विभेद या मध्य ग्रंथ लिपि है इस लिपि में लिखा प्राचीनतम अभिलेख पश्चिमी चालुक्य विक्रमादित्य प्रथम (ई.655680) के प्रतिद्वन्द्वी परमेश्वर के राज्य काल का कूरम पट्ट ( फल. VII, स्त. XXIV) हैं 1346 यह प्रलेख सच्चे लिपिक की कृति मालूम पड़ता है । इसकी तुलना में कैलाश नाथ मंदिर का स्मारक अभिलेख ( फल VII, स्त. XXIII)
345. डाइनेस्टीज आफ दि कनड़ीज डिस्ट्रिक्ट्स, बांबे गजेटियर जिल्द I, खंड II पृ. 328 ।
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346. हुल्श, सा. इं. ई., I पृ. 144 तथा आगे; फ्लीट, वही ( पूर्व टिप्पणी ) पृ. 322 तथा आगे ।
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