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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तर कालीन कलिंगलिपि १४३ कोल पट्टों से निर्मित है और स्त. XI में, जो संवत् 254 के विजगापटम पट्टों से बना और स्त. XII में जो संवत् 304 के अलमंड पट्टों से निर्मित है हमें अ, आ (1, 2, X-XII), इ (3, XI), उ (5,x), क (44, XI, XII), ख, (12, XI), डू (15, XII), ज (18, XII), अ (ज्ञ में, 19, X),डा (22, XII), ण (24, XI, XII), ध (28, 45, XI), न (48, X) और प्र (47, XII) के उत्तरी रूप मिलते हैं। अन्य अक्षर दक्षिणी से निकले हैं। ये आंशिक रूप में मध्य कन्नड़ और आंशिक रूप में मध्य ग्रंथ के हैं या इनके अपने विलक्षण विकास हैं । फल. VII के सीमित स्थान में प्रत्येक अक्षर के सभी रूपों का देना असंभव था। किन्तु अकेले ज के तीन रूप (18, 46, 47, X) दिये गये हैं, जिनसे स्पष्ट हैं कि इनमें कितनी अधिक विभिन्नता है। इनसे भी अधिक मिलावट और विभिन्नता के दर्शन गांगेय संवत् 351 के चिकाकोल पट्टों339 और 11वीं शती के वज्रहस्त के अतिथिक दानपत्र में (कीलहार्न) 340 होते हैं । हमारे फलक में इनके अक्षर नहीं दिये गये हैं। फ्लीट के अनुसार इनमें से पहले प्रलेख में प्रत्येक अक्षर के कम-से-कम दो रूप हैं, किन्तु कभीकभी एक ही अक्षर के तीन या चार रूप भी मिलते हैं। इनमें अधिकांश चिह्न दक्षिणी नागरी के हैं। किन्तु पुरानी कन्नड़ और उत्तरकालीन ग्रंथ लिपि के चिह्न भी इसमें मिलते हैं। कीलहान की गिनती के मुताबिक बज्रहस्त के दानपत्र में नागरी के 320 और अन्य विभिन्न प्रकारों के दक्षिणी अक्षरों की संख्या 410 है । प्रत्येक अक्षर के भी कम-से-कम दो और कभी-कभी तो चार या इससे भी अधिक रूप हैं। कीलहान ने बतलाया है कि इसके लेखक ने विभिन्न रूपों की टोलियाँ बनाने में एक खास कला का परिचय दिया है। और कीलहान का यह कथन ठीक है कि यह मिलावट राजकीय लिपिकारों के दिखावेपन के कारण है जो यह बताना चाहते थे कि वे अनेक लिपियों के जानकार हैं। इसी वजह से गांगेय संवत् 183 339. इं. ऐं. XIV, पृ. 10 तथा आगे । हुल्श का पाठ शुद्ध है । फ्लीट ने अपनी डाइनेस्टीज आफ दि कनड़ीज डिस्ट्रिक्ट्स, बाम्बे गजटियर जिल्द I, खंड II, पृ. 297 टि. 8 पर यही पाठ ग्रहण किया है। इसके छपे हुए पन्ने फ्लीट महोदय ने मुझे भेजने की कृपा की है । फ्लीट ने इस अभिलेख और फलक VIII, स्तं. X, XII के अभिलेखों को संदेहास्पद कहा है, पर मेरी राय में उन्होंने संदेह का पर्याप्त कारण नहीं दिया है । 340. ए. ई. III, 220. 143 For Private and Personal Use Only
SR No.020122
Book TitleBharatiya Puralipi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeorge Buhler, Mangalnath Sinh
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1966
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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