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भारतीय पुरालिपि-शास्त्र इ. इ. III) सं. 40, 41, 56, 81, फल. 26, 27, 35, 45 के दानपत्रों में यह बात सबसे अच्छी तरह से देखी जा सकती है। फ्लीट के सं. 56 के अभिलेख से लेकर हमने फल. VII, स्त. XI में वर्णमाला दी है। स्त. X में फ्लीट के सं. 55 फल. 34 के अक्षर हैं। इनके रूप परिवर्तन में उससे कम सतर्कता बरती गई है। ये दोनों अभिलेख वाकाटक राजा प्रवरसेन द्वितीय के धर्माधिकरण से एक ही वर्ष में जारी किये गये थे।
पश्चिमी विभेद की भांति इस लिपि पर भी उत्तरी लिपि की छाप है, विशेषकर त, ध, न और ए, ऐ और ओ की मात्राओं पर। फ्लीट के गुप्त इन्स्क्रिप्शंस के अभिलेख सं. 81, फल. 45 में इन मात्राओं में 7वीं 8वीं शती (फल. VII, 43, X) के दुमदार विशिष्ट उत्तरी रूप मिलते हैं। संयुक्ताक्षर में, देखि. न्त फल. VII, 43 X, अक्सर हमें त में तो फंदा मिलता है पर न में नहीं । अपवादस्वरूप स्नातानाम् (सं. 55 पंक्ति 7; सं. 56 पंक्ति 6) में तो स्वतंत्र फंदेदार त भी मिलता है । 313 फ्लीट सं. 2,3, 40, 81, फल. 2, A.B, 26, 45 में उत्तरी और पश्चिमी की भाँति औ की त्रिपक्षीय मात्रा मिलती है। वाकाटक अभिलेखों में दक्षिणी का द्विपक्षीय रूप (दे. दौ, फल. VII, 24, XI) मिलता है । ख में एक बड़ा-सा हुक और छोटा-सा फंदा लगता है । आयत-रूप च में दाईं ओर एक खड़ी रेखा है। ख और च के ये रूप दक्षिणी के रूपों से मिलते-जुलते हैं । फ्लीट के गुप्त इन्स्क्रिप्शंस सं. 2, पंक्ति 17 के शुल्का में उत्तरी क मिलता है, जिसके नीचे भंग नहीं है।
इस लिपि के अन्य अक्षरों में भी प्रायः अल्पाधिक मात्रा में परिवर्तन दीखते हैं। हमारे फलक के आ, ज, थ, ब, और ल में ऐसे उदाहरण हैं। फ्लीट और कीलहान ने गुप्त इन्स्क्रिप्शंस और ए. इ. III में इन अभिलेखों का संपादन करते हुए ऐसे और उदाहरण दिये हैं । फ्लीट की टिप्पणी से आगे मैं कहना चाहूंगा कि उनके अभिलेख सं. 40, 41 और 81 के म में उत्तरकालीन तेलुगू, कन्नड़ लिपि का कोणीय म मिलता है । दे. आगे 29, आ, 6 ।
29. तेलुग-कन्नड़ लिपि : फल. VII और VIII
__ अ. पुरागत विभेद इस लिपि का पुरागत विभेद निम्नलिखित में मिलता है :
313. फ्लीट और कीलहान का मत है कि लेखक भूल से त के लिए न और न के लिए त लिख देते थे।
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