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पश्चिमी लिपि
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28. पश्चिमी और मध्यभारत की लिपियां
फल. VII और VIII
___ अ. पश्चिमी लिपि दक्षिणी का पश्चिमी विभेद चन्द्रगुप्त द्वितीय के समय से गुप्त सम्राटों और उनके सामंतों के अभिलेखों में291, वलभी के राजाओं,292 भड़ोंच के गुर्जरों293, बादामी के कतिपय चालुक्यों (पुलकेशिन द्वितीय और विजय भट्टारिका), नासिक और गुजरात के चालुक्यों और उनके सामंतों294, त्रैकूटकों295, खानदेश के अश्मकों (?) 296 और गुजरात के राष्ट्रकूटों297 के अभिलेखों में मिलती है। कण्हेरी, नासिक और अजंता की गुफाओं298 के अनेक दानलेखों में भी यह लिपि मिलती है। उत्तरी लिपियों की भाँति इसे सामान्यतया रोशनाई से ही लिखते थे (देखि. ऊपर 21)। गुप्त काल में इसके अक्षरों के सिरों पर कीलें बनती थी (दे. फल. VII स्त. I-III)। इससे भी इस संभावना को बल मिलता है । वलभी, गुर्जर और राष्ट्रकूटों के दानपत्रों के अक्षरों के सिरे मोटे, अक्सर गांठ जैसे बनते थे (फल. VII, स्त. IV--IX, फल, VIII, स्त. I) । ये
291. मिला. फ्ली. गु. इं. (का. इं. ई. III) सं. 5, 14, और 62, फल. 3 B, 8, 38 B और फ्लीट की टिप्पणी।
292. मिला. वही सं. 38, 39, फल. 24, 25; इं. ऐ. I, 17; v, पृ. 204 तथा आगे। ____293. मिला. ज. रा. ए. सो. 1865, 247; इं. ऐ. XIII, 78; (VII, 62; XIII, 116; XVII, 200; विवादास्पद); ए. ई. II, पृष्ठ 19 तथा आगे की प्रतिकृतियों से ।।
294. मिला. ए. ई. III, 52; इं. ऐ. VII, 164; VIII, 46; IX, 124; ज. बा. ब्रां. रा. सो. XVI, 1, सातवीं ओरियंटल कांग्रेस आर्यन सेक्शन, 238; इं. ऐ. XIX, 310 की प्रतिकृतियों से ।
295. मिला. ब. आ. सं. रि. वे. इं., सं. 10, 58 की प्रतिकृतियों से । 296. इं. ऐ. XVI, 98 की प्रतिकृति से ।
297. इं. ऐ. XII, 158; ज. बा. ब्रा. रा. ए. सो. XVI, 105; ए. ई. III, 56 की प्रतिकृतियों से।
298. मिला. ब. आ. स. रि. वे. इं. IV, फल. 55, 9; फल. 58, 5 और 9; फल. 59, 60; V, फल. 51, 69.
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