________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
११६
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
भारतीय पुरालिपि शास्त्र
इ. संयुक्ताक्षर
1. छठीं और बाद की शताब्दियों के अभिलेखों और हस्तलिखित ग्रंथों में भी हमें कभी-कभी ऐसे संयुक्ताक्षर मिलते हैं जिनमें दूसरा व्यंजन पहले वाले व्यंजन के नीचे नहीं बल्कि उस की दाईं ओर रखा जाता है ( देखि. उदाहरणार्थ फलक IV, 45, XI, V 47, II; VI, 51, VI 1282
2. न्यूनकोणीय लिपि के प्रस्तर के अभिलेखों में नीचे का दूसरा व्यंजन प्रायः अलंकृत रहता है । सातवीं शती से कभी-कभी इसके पहले भी य की दाईं ऊपरी लकीर पूरे अक्षर की ऊपरी रेखा तक खिंच जाती है ( देखि. उदा. फल. IV, 46, VIII, XIX; 43, 45, XIII; VI, 51, VI ) ।
3. यदि किसी संयुक्त व्यंजन में पहले र आता है तो वह रेखा से ऊपर रहता है और इसके लिए एक कील की शक्ल या कोण या दाईं ओर को खुला भंग बना देते हैं । र्म में म का बायाँ भाग छोटा हो जाता है और इस छोटी रेखा पर रखी जाने वाली कील का सिरा ऊपरी रेखा से बाहर नहीं झांकता ( फल. VI, 49, VI) ऊपर लिखे र के ऐसे ही अवनमन अफसड़ अभिलेख हर्ष के ताम्रपट्टों और कतिपय हस्तलिखित ग्रंथों में 263 दूसरे व्यंजनों के साथ भी मिलते हैं । ( फल. VI, 51, XIII, XIV) । 9वीं शती तक र्य के लिए र बनाकर उसके नीचे य लिखते थे ( देखि. उदाहरणार्थ फल. IV, 44, XVIII; 45, VII और मिला. E I. 3, 103
25. शारदा लिपि : फलक V और VI
अ.
पश्चिमी गुप्त - लिपि के वंश में जन्मी शारदा लिपि 264 की पहिचान आसानी से हो जाती है । यह 800 ई. के आसपास कश्मीर और उत्तर-पूर्वी पंजाब ( कांगड़ा और चंबा) में प्रकट होती है । अब तक शारदा के जितने अभिलेखों का पता चला है उनमें कीरग्राम (कांगड़ा) की दोनों बैजनाथ प्रशस्तियाँ सबसे पुरानी हैं (दे. फल. V, स्त. I ) । इनकी तिथि 804 ई. है । कश्मीर के वर्म
For Private and Personal Use Only
262. Anec., Oxon. Ar. Series, I, 3, 87.
263. फ्ली. गु. इं. ( का. इं. इं. III ), 202; कीलहार्न ए. ई. I, 179. 264. कश्मीर रिपोर्ट (ज. बा. ब्रा. रा. ए. सो. XII), 31; ज. ए. सो. बं. LX, 83 से इस पैराग्राफ को मिलाइए ।
116