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भारतीय पुरालिपि-शास्त्र
एक शब्द जनमें (पंक्ति 11, अंत) 256 आया है। इसके ड में यह बिंदी है । हमने यहाँ जो फलक छापे हैं उनमें एक ही उदाहरण बिंदी का दिया है जो काफी बाद के एक प्रलेख का है । (देखि. फल. V, 14, XIX) यह बिंदी संभवतः उस शैल-प्रवर्ध से ही निकली होगी जो अक्षर के सिर की लकीर के अंत में प्रायः मिलता है (देखि. फल. V, 14, V, VI, VIII) ।
____12. ज का बिचला डंडा पहले नीचे तिरछे झुकता है (फल. IV, 14, XXIXXIII आदि) फिर एक खड़ी लकीर में परिणत हो जाता है (फल. V, 17, XIII, आदि; और VI, 22, XII आदि) साथ ही ऊपरी डंडा अक्षर की शिरोरेखा भी बन जाता है और एक दम नीचे वाला डंडा धीरेधीरे एक दुहरे भंग में बदल जाता है ।
13. होरियूजी ताड़पत्रों में स्वतंत्र भ का दायां अंग (फल. IV, 24, v) ऊपर को उलट दिया गया है । संयुक्ताक्षरों में यदा-कदा यही रूप मिलता है। किन्तु इनमें चिह्न बगल में रखकर इसके कोणों को भंग का रूप दे देते हैं । दायां भंग खडी लकीर के किनारे जोड देते हैं। यह रेखा अब काफी छोटी हो चुकी है। इसलिए अक्षर अक्सर ण जैसा दीखता है (दे. फल. IV, 16, XI, आदि; V, 19, IV, V, आदि)। 11 वीं और बाद की शताब्दियों की नागरी में संयुक्ताक्षरों में आने वाला आज के वामांग में जुड़ता है (फल. V, 19, XII-XIV; VI, 24, XVI) और आधुनिक देवनागरी का घसीट आ जिसे अब हिंदू मात्रिका मानने लगे हैं इसी रूप के सरलीकरण का परिणाम है।
14. छठी शती से ही मुर्धन्य ट के ऊपर प्रायः एक कील लगाने लगते हैं (फल. IV, 17, XVII; V, 20, II, VI; VI, 25, VI)। नागरी में इस कील की जगह एक छोटी-सी खड़ी या तिरछी लकीर मिलती है (फल. IV, 17, XXI, XXII; V, 20, XIII, 3tifa; VI, 25, XV), ___ 15. ऐसी ही जोड़ें मूधय॑ ठ के ऊपर 10वीं शती में प्रकट होती हैं (फल. V, 21, X, आदि; VI, 26, XV)। ____16. नवीं शती से दक्षिणी लिपि का गोली पीठ वाला मूर्धन्य ड इस्तेमाल में आने लगता है जिसके अखीर म बाईं ओर को खुला एक भंग होता है ' (फल. V, 22, II, VIII आदि )। ____17. संयुक्ताक्षरों में मूर्धन्य ण की प्राथमिक आधार रेखा सातवीं शती से ही दबने लगती है (ण्ड, फल. IV, 21, XIX) । असंयुक्ताक्षरों में यह 256. ए. ई. II, 297.
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