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भारतीय पुरालिपि-शास्त्र से ही शुरू हो जाती हैं। फलक VI के स्त. XV---XVII में इनके नमूने हैं जो ल्यूमैन के फोटोग्राफ और सन् 1081 के विशेषावश्यकभाष्यटीका के अनुरेखण से लिये गये हैं। रायल एशियाटिक सोसायटी के सन् 1229 के गणरत्न महोदधि से भी कुछ पूरक सामग्री ली गयी है ।248 नेपाल के 11वीं12वीं शती के कतिपय हस्तलिखित ग्रथों में भी 16वीं शती की उत्तरी नागरी के रूप मिलते हैं । फलक VI के स्त. XIII में कैंब्रिज हस्तलिखित ग्रंथ सं. 866 से इस लिपि का एक नमूना दिया गया है। कैंब्रिज की इस वर्ग की हस्तलिखित प्रतियों में यह सबसे पुरानी है और इसकी तिथि सन् 1008 है । 240 फलक VI, स्त. XIV की लिपि भी इसी प्रकार की है। यह Anecdota Oxoniensia Aryan Series, 1, 1, फलक 4 की ववच्छेदिका की वाइली की प्रतिलिपि के स्त० ! का रिप्रोडक्शन है।
24. न्यूनकोणीय और नागरी लिपियों में परिवर्तन के व्योरे250
अ. मात्रिकाएं कालांतर में न्यनकोणीय और नागरी लिपियों के अक्षरों में अनेक विध परिवर्तन हुए। इनमें मात्रिकाओं पर प्रभाव डालने वाले निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण परिवर्तनों का उल्लेख विशेष रूप से किया जा सकता है।
1. ए, घ, च, थ, ध, प, ब, म, य, ल, व, ष और स में छोटी या बड़ी दुमें
248. कीलहान, रि. सं. म. 1880-81; पृ. VII, 37; ज.रा.ए.सो. 1895, 247, 504; मिला. Pal, Soc. Or. Series फल. 1, 2, 3, 58; Cat, Berlin Skt. und Prakr. Hdschft., Band 2, 3, फल.I की प्रतिकृतियों से; विशेषावश्यक और अन्य हस्तलिखित ग्रंथों के हाशिये के नोटों में प्रायः अन्य घसीट लिपियाँ मिलती हैं, दे. ल्युमन का संस्करण, फल. 35.
249. बेंडेल. कै. बु. सं. म. ने. प. XXIV, 1; मिला. Pal. Soc., Or. Series., पृ. 16 की प्रतिकृति से। ओल्डेनवर्ग के मत से (उनका पत्र तारीख 7 अप्रैल, 1897) इन नेपाली हस्तलिखित ग्रंथों की वर्णमाला तथा लजा लिपि में है जिसमें सद्धर्म पुण्डरीक की एक हस्तलिखित प्रति भी मिली है जो सेंट पीटर्सवर्ग में सुरक्षित है।
250. इस पैराग्राफ के लिए मिला. बेंडेल, कै. कै. बु. म. ने. XLIIILI; Anec. Oxon., Aryan, Series, I, 3, 73-87.
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