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गुप्त-लिपि बगल में रख देते हैं । ज्ञः, फलक III, 40, XIV से भी तुलना कीजिए । किंतु पुराने कोणीय रूप भी चलते रहते हैं (42, V)।
9. ट (17, I-III, IX) का ऊपरी हिस्सा अक्सर चपटा कर नीचे झुका देते हैं।
10. 21, I, II के ण में दायें किनारे एक छोटी-सी लकीर है। यह लकीर दाईं तरफ हुक को ठीक स्थान पर न बनाने की वजह से बनी है। दूसरे चिह्न में घसीट लेखन के कारण बाईं ओर एक फंदा बन गया है। 21, III में अक्षर को बगल में लिटा दिया गया है। यह अक्षर नागरी ण से कुछ-कुछ मिलता है।
11. थ (23, I, V-IX) अधिकतर अर्घवृत्ताकार या दाईं ओर को चिपटा किया होता है। केन्द्र में बिंदी के स्थान पर एक अर्गला लगती है। पुराना रूप भी चलता रहता हैं (23, II, III) 210 | - 12. य (32, I-IX) का त्रिपक्षीय रूप ही अधिकतर मिलता है। पर कभी-कभी, खासकर ये, यै और यो में फंदेदार उत्तरकालीन, 32, VIII, XVI जैसे संक्रांतिकालीन रूप भी मिलते हैं । इनसे ही द्विपक्षीय रूप बनते हैं ।211 य के स्वतंत्र फंदेदार रूप का सबसे प्राचीन उदाहरण 371 ई. का फ्लीट का सं 59 का अभिलेख है, किंतु कुषान अभिलेखों में संयुक्ताक्षर में नीचे का फंदेदार य इससे भी प्राचीन है (दे. 19, आ 12 )। ____13. स (38, I-III, V, VI, VIII) का वामांग बहुधा फंदे की शक्ल में परिणत हो जाता है। कुषान अभिलेखों में भी ऐसा हो जाता था (दे. 19, आ, 16)। इस फंदे के स्थान पर त्रिभुज भी मिलता है (संभवतः यह एक कील की ही रूप रेखा है।) ऐसे त्रिभुज नेपाल के तीन प्राचीनतम अभिलेखों में मिलते हैं। मिला. 38, XII का उत्तरकालीन स । किंतु प्राक्तर हुकदार स भी इतना ही प्रचलित है ।
14. दुर्लभ ळ (40, I-III) फ्लीट सं. 17 की प्रथम पंक्ति में भी मिलता है।
_15. स्वरों के मात्रा चिह्न अनेक बातों में कुषान काल के चिह्नों से मिलतेजुलते हैं। किन्तु टा (17, II) और णा में आ की मात्रा का चिह्न खुला अर्द्धवृत्त है जो एक नवीनता है । इ की मात्रा, उदाहरणार्थ खि (8, III, VI, IX) में, पहले के अभिलेखों की अपेक्षा और बायें खिंच गई है। कुछ अभिलेखों
210. मिला. फ्ली. गु. इं (का. ई. ई. III) सं. 61 की प्रतिकृति से। ": 211. ज. ए. सो. बं, LX, पृ. 83 तथा आगे ।
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