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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुप्त-लिपि भिलसा के नजदीक कैसे मिलता है ? इसका खुलासा इस बात से हो जाता है कि यह लेख चन्द्रगुप्त द्वितीय के एक मंत्री ने उस समय खुदवाया था जब वह अपने स्वामी के साथ मालवा के अभियान पर गया हुआ था। यह मंत्री अपने को पाटलिपुत्र का निवासी बतलाता है। फ्लीट के अभिलेख सं. 77 की उत्पत्ति के बारे में कुछ भी पता नहीं। यह लेख एक मुहर पर खुदा है। मुहर लाहौर में खरीदी गई थी, पर संभवतः पूर्वी भारत में तैयार की गयी थी। गुप्त लिपि के पश्चिमी विभेद की भी दो शैलियाँ हैं, घसीट गोलाईदार और कोणीय, स्मारक शैली । कोणीय शैली की विशेषता सिरों पर मोटी रेखाएँ और र (33) का हुकवाला रूप है । यह फलक IV के स्त. IV में मिलेगी। इस स्तम्भ की वर्णमाला 415 ई. की बिलसड़ प्रशस्ति से ली गई है। इसका एक सुंदर उदाहरण फ्लीट सं. 32, दिल्ली में मेहरौली लोहस्तंभ का अभिलेख है। घसीट शैली के नमने स्तम्भ VII में 465 ई. के इंदौर ताम्रपट से; स्त० VIII में तोरमाण के कुड़ा अभिलेख से205, जो संभवतः ईसा की पाँचवीं शती के उत्तरार्द्ध का है; और स्त. IX में उच्चकल्प के जयनाथ के 174 संवत्, संभवतः 423 ई.206 के कारीतलाई ताम्रपट्ट से लिये गये हैं। यही शैली फ्लीट के सं. 4, 13, 16, 19, 22-31, 36, 61, 63, 66, 67, 69, 74, 76 और मथुरा के जैनों के दानलेखों, न्यू सिरीज सं. 38, 39207 में भी मिलती है। ध्यान देने की बात यह है कि फ्लीट का सं. 13 का भितरी अभिलेख एक ऐसे स्थान में मिला है जहाँ पूर्वी विभेद मिलना चाहिए था। फ्लीट सं. 61 मालवा के के उदयगिरि का जैन अभिलेख है । इसमें उत्तरी अक्षरों में दक्षिणी का मेल है क्योंकि इसमें अ, आ के रूपों में भंग मिलता है और एक बार दक्षिणी ऋ भी। फ्लीट सं. 59, राजस्थान के विजयगढ़ अभिलेख के बारे में भी संभवतः ऐसा ही हुआ है। इसमें भी र के अंत में भंग है और इ और ई की मात्राएं फलक III के स्तंभ XVI से मिलती-जुलती हैं । गुप्त सिक्कों208 के अक्षर पश्चगामी हैं, उदाहरणार्थ इनमें कुषान कालीन कोणीय म मिलता है। 205. ई. ऐ. XVIII, 225 206. फ्लीट के मत से उच्चकल्प राजा 249 ई. वाले चेदि या कलचुरि संवत् का प्रयोग करते थे, इं. ऐ. XIX, 227. 207. ए. ई. II, 210. 1208. ज. ए. सो. बं. LVIII, फल. 2-4; ज. रा. ए. सो. 1889 फल. 1-4 और पृ. 34 तथा आगे और 1893, फल. 2. 97 For Private and Personal Use Only
SR No.020122
Book TitleBharatiya Puralipi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeorge Buhler, Mangalnath Sinh
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1966
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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