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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतमें दुर्भिक्ष । उनके केवल एक बटन दबाने मात्रसे बिजली द्वारा यथेच्छ जल खेतोंमें आ जाता है । फसल काटनेके लिये एक दो मनुष्योंसे चलाई जानेवाली मशीनें हजारों मनुष्योंकी आवश्यकताकी पूर्ती कर देती है। यदि बादल घुमड़े और उनसे फसलको हानि होनेकी आशंका हो तो वे बड़ी बड़ी तोपों द्वारा आकाशकी ओर गोले बरसा कर बादलोंको फाड़ डालते हैं और उन्हें तितर-बितर कर देते है। हमारे भारतीयोंकी भाँति वे उसे इन्द्रके भिश्तीकी मशक समझ कर हाथ जोड़ कर प्रणाम नहीं करने लगते । वहँ। यदि पालेसे खेतको हानि होने का भय हो तो उनके पास ऐसे यंत्र हैं जिनकी सहायतासे वे खेतोंमें गर्मी पैदा कर उन्हें पालेसे बचा लेते हैं। भारतीय कृषकोंके सिर पर सदा वर्षा, ओले, पाले और टिड्डी आदिका भय सवार रहता है। __ हमार यहाँका शिक्षित समुदाय कृषिको निंद्य और गँवारू धन्धा समझ कर उस ओर ध्यान नहीं देता । बेचारे अपद, अज्ञान किसान जो कुछ कर रहे हैं वही बहुत है, नहीं तो संसार भूखों मर जाता। जमीनें बराबर जुतती रहती हैं और बोई जाती हैं अतः उनमें उर्वराशक्ति बिलकुल नहीं रही गई। भूमि कमजोर हो जानेसे उसमें उपज नाम मात्रकी होती है। उत्तम खाद देकर उसे शक्तिवान बनाना हमारे कृषकोंको नहीं आता और आता भी है तो दरिद्रताके कारण उनके पास उसके साधन ही नहीं होते । भला जिस भमिको शक्तिवान बनानके लिये कोई खूराक न दी जावे और उससे फसल अच्छी पानेकी आशा की जाय तो यह कितनी मूर्खता है। हमारे कृषक आधुनिक कृषि-विद्यासे बिलकुल अनभिज्ञ हैं। अपने पुराने हल और मरे बैलोंसे सड़ा या खराब बीज चार अंगुल गहरी भूमि फाड़ कर डालना ही उन्हें आता है, पदा हो या न हो। वे अपने भाग्यके भरोसे बैठ जाते हैं। For Private And Personal Use Only
SR No.020121
Book TitleBharat me Durbhiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshdatta Sharma
PublisherGandhi Hindi Pustak Bhandar
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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