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भारतमें दुर्भिक्ष।
व्यापार
कक समय वह भी था, जब कि रोम, यूनान, चीन, जापान, मिश्र,
ईरान आदि देशोमें यहाँका माल जा कर आदर पाता था। इतिहाससे पता लगता है कि " आजसे एक हजार वर्ष पूर्व इस देशका मिश्रके साथ वाणिज्य-सम्बन्ध था। इसी भैाति प्रायः पाच हजार वर्ष पहले इस देशका बेबिलोनियाके साथ भी वाणिज्यसम्बन्ध था "। ( इतिहास भारतवर्ष देखिए)। निबन्ध-संग्रहके पृष्ट ७०में लिखा है किः-" प्राचीन समयमें इस देशका व्यापार बहुत अच्छी दशामें था। यूरोपके कवियों, लेखकों और प्रवासियोंने इस देशकी कारीगरी, कला-कुशलता तथा वैभवकी खूब प्रशंसा की है। उस समय इस देशकी बनी वस्तुएँ दुनियाके सब भागोंमें भेजी जाती थी; और वह अन्य देशोंकी वस्तुओंसे अधिक पसन्द की जाती थीं। अकेले बंगाल प्रांतसे १५ करोड़ रुपयोंका महीन कपड़ा प्रति वर्ष विदेशोंको भेजा जाता था ! पटनेमें ३३०४२६, शाहाबादमें १५९. ५०० और गोरखपुरमें १८५६०० स्त्रिया चरखों पर सूत कात कर ३५ लाख रुपये कमा लेती थीं। इसी प्रकार दीनाजपुरकी स्त्रियाँ ९ लाख और पुर्निया जिलेकी स्त्रियाँ १० लाख रुपयोंका सूत कातती थीं । सन् १७५७ ई० में जब लार्ड क्लाइब मुर्शिदाबाद गये थे, तब उसके सम्बन्धमें उन्होंने कहा था कि-" यह शहर लन्दनके समान विस्तृत, आबाद और धनी है; इस शहरके लोग लन्दनसे भी अधिक धनवान हैं । " श्रीयुत आर० सी० दत्तने लिखा है-" प्राचीन
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