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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतमें दुर्भिक्ष। व्यापार कक समय वह भी था, जब कि रोम, यूनान, चीन, जापान, मिश्र, ईरान आदि देशोमें यहाँका माल जा कर आदर पाता था। इतिहाससे पता लगता है कि " आजसे एक हजार वर्ष पूर्व इस देशका मिश्रके साथ वाणिज्य-सम्बन्ध था। इसी भैाति प्रायः पाच हजार वर्ष पहले इस देशका बेबिलोनियाके साथ भी वाणिज्यसम्बन्ध था "। ( इतिहास भारतवर्ष देखिए)। निबन्ध-संग्रहके पृष्ट ७०में लिखा है किः-" प्राचीन समयमें इस देशका व्यापार बहुत अच्छी दशामें था। यूरोपके कवियों, लेखकों और प्रवासियोंने इस देशकी कारीगरी, कला-कुशलता तथा वैभवकी खूब प्रशंसा की है। उस समय इस देशकी बनी वस्तुएँ दुनियाके सब भागोंमें भेजी जाती थी; और वह अन्य देशोंकी वस्तुओंसे अधिक पसन्द की जाती थीं। अकेले बंगाल प्रांतसे १५ करोड़ रुपयोंका महीन कपड़ा प्रति वर्ष विदेशोंको भेजा जाता था ! पटनेमें ३३०४२६, शाहाबादमें १५९. ५०० और गोरखपुरमें १८५६०० स्त्रिया चरखों पर सूत कात कर ३५ लाख रुपये कमा लेती थीं। इसी प्रकार दीनाजपुरकी स्त्रियाँ ९ लाख और पुर्निया जिलेकी स्त्रियाँ १० लाख रुपयोंका सूत कातती थीं । सन् १७५७ ई० में जब लार्ड क्लाइब मुर्शिदाबाद गये थे, तब उसके सम्बन्धमें उन्होंने कहा था कि-" यह शहर लन्दनके समान विस्तृत, आबाद और धनी है; इस शहरके लोग लन्दनसे भी अधिक धनवान हैं । " श्रीयुत आर० सी० दत्तने लिखा है-" प्राचीन For Private And Personal Use Only
SR No.020121
Book TitleBharat me Durbhiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshdatta Sharma
PublisherGandhi Hindi Pustak Bhandar
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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