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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अँगरेजोंका प्रभुत्व स्थापित हुआ तबसे देशके सब व्यापार-धन्धे विदेशियोंके हाथ चले गये; देशकी कारीगरी, कला-कौशल घड़ी-ऋरतासे बरबार कर दिये गये; अन्न, वस्त्र, दूध, घी आदिकी अभूत-पूर्व मँहगीने गरीब भारतीयोंको तबाह कर दिया; शताब्दियोंसे भारतकी छाती पर दुर्भिक्ष-दानव लोमहर्षण तांडवनत्य कर रहा है। जिस भारतें ७५० वर्षों में केवल 1८ अकाल पड़ेसो भी देशव्यापी नहीं, प्रान्तीय -- उसी में सिर्फ सौ वर्षों में ३१ दारुण अकाल पड़े और उनमें सवा तीन करोड़ मनुष्य काल-कवलित हुए ! देशकी इस रोमाञ्चकारी दुर्दशाको पढ़ कर पत्थरके जैसा हृदय भी दहल उठेगा और सहानुभतिकी आहोंके साथ आँखोंसे आँसू गिरने लगेंगे। प्रत्येक सहृदय भारतवासीको एक बार यह पुस्तक अवश्य पढ़नी चाहिए । मू. १) रु. पक्की जिल्दक।) २१ स्वाधीन भारत-ले०महात्मा गाँधी । भारत पराधीन है-गुलामीकी बेड़ियोंसे जकड़ा हुआ है । वह स्वाधीन कैसे हो सकता है, इसी विषय पर सत्य, दृढ़ता और निर्भीकतासे महात्माजीने इस दिव्य पुस्तक विवेचन किया है। संक्षिप्तमें इस पुस्तकको महात्माजी के सारे जीवनका अनुभव समझिए । इस पुस्तकका घर-घरमें प्रचार होना चाहिए । इसी विचारसे इसका मूल्य भी कम रक्खा गया है । १५० पृष्ठोंकी पुस्तका मूल्य सिर्फ बारह आने। __ २२ महाराजा रणजीतसिंह-ले. पं० नन्दकुमारदेव शर्मा । कोई २५-३० ग्रंथों के आधार पर लिखा गया पंजाब केसरी रणजीतसिंहका स्वतंत्र और महत्त्वपूर्ण जीवनचरित । इसे पंजाबका सौ वर्षाका इतिहास समझिए । पंजाब केसरी बड़े वीर और प्रतिभाशाली अन्तिम हिन्दू राजा हुए हैं। पंजाब जब बड़ी बिकट स्थितिमें था और चारों ओर खून-खराबी और मारकाटका बाजार गर्म था तब पंजाब केसरी अपनी लोकोत्तर वीरता और बुद्धिसे थोड़े ही वर्षामें सारे पंजाब पर विजय करके उसे एकाधिपत्य शासनके छत्रतले ले आये। उनमें अद्भुत संगठन-शक्ति और शासन-क्षमता थी। उनकी वीरता और महाप्राणताकी विदेशी विद्वानोंने भी बड़ी तारीफ की है। प्रत्येक देशाभिमानीको पंजाब केसरीकी यह वीर रस-पूर्ण जीवनी पढ़नी चाहिए । मू० १ ) रु० सजि. २१) रु. मैनेजर-गाँधी हिन्दी-पुस्तक भंडार, कालबादेवी--बम्बई For Private And Personal Use Only
SR No.020121
Book TitleBharat me Durbhiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshdatta Sharma
PublisherGandhi Hindi Pustak Bhandar
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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