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दुर्भिक्ष ।
२३७.
दे रखा था, वह किंचित् भी कम होने नहीं पाया कि इधर तीन महीनोंसे खाद्य पदार्थों की नित्यकी बढ़ती हुई महँगीने इस समय सर्व-साधारणको एक बारगी ही विचलित कर दिया है। हम जानते हैं कि वर्तमान यूरोपीय युद्ध में विजय प्राप्ति होने पर भारतको अनेक दुःखोंसे छुटकारा मिलेगा। वह अपने साम्राज्यका रक्षण रखता हुआ अपने मनोभिलषत पदको पायेगा, और इसी आशा-भरोसेके बल पर भारतने वर्तमान युद्ध में ब्रिटिश सरकारको अपार सहायता पहुँचाई है; पर जब हम देखते हैं कि भूखके मारे देशकी गरीब और साधारण स्थितिवाली प्रजा आज एक चारगी विह्वल हो उठी है, उसे पेटके कष्टके निवारण करने के लिये एककी जगह दो-दो तीन-तीन खर्च करने पड़ते हैं, तब उसकी इस अवस्थाको देख विशेष कष्ट होता है । लोहा, पीतल आदिकी महँगी सही जा सकती है, कपड़ेकी महँगी भी उस प्रकारका दुःख नहीं दे सकती, जितना कि खाद्य पदार्थोकी महँगीसे प्रजा दुःख उठाती है । लोहा, पीतल प्रभृति बिना अत्यावश्यक कार्यके हम नहीं खरीदते, धोतीकी जगह गमछेसे लोग काम चला सकते हैं, नंगे बदन रहते हुए भी केवल लंगोट बाँध कर गरीब परुष लज्जा निवारण कर सकते हैं । पर अन्नकी कमी किसी अवस्थामें भी सही नहीं जा सकती। पेटके दुःखके सामने कोई दुःख टिक नहीं सकता । फलतः इस समय अन्नकी दर जिस रीतिसे नित्य बढ़ती जा रही है, उसे देख विचारशील मात्रको विशेष चिन्तित होना पड़ा है। __ लड़ाई के कारण जो वस्तुएँ महँगी हुई हैं, उनकी महँगी बिना युद समाप्त हुए पूर्णमात्रामें घट नहीं सकती। पर जिन वस्तुओंका
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