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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दुर्भिक्ष । २३१ साल देशमें एक तरहसे सूखा पड़ा है। सूखा अकाल पानीके अकालसे बड़ा भयानक होता है। अधिक पानी बरसनेसे जो अकाल होता है उससे फिर भी रबीके होनेकी उम्मीद होती है, पर सूखेके कारण खरीप तो बिगड़ ही जाती है, पर जमीन सूखी होनेके कारण रबीकी भी आशा नहीं होती। यानी सूखा अकाल दोनों फसलोंका घातक होता है और इस समय हिन्दुस्तानके सामने वही घातक अकाल है । इसका निवारण नहरोंसे हो सकता है। पर सरकारने पिछले पचास बरसोंमें जितना जियादा फौजी खर्च बढ़ाया उसका चौथाई भी प्रजाको भूखों मरनेसे बचानेवाली नहरोंको बढानेमें खर्च नहीं किया। देशकी शान्ति और सुव्यवस्था इसमें है कि प्रजा भूखों न मरे, पर सरकार यह समझती रही है कि शान्ति और सुव्यवस्था बड़ी जंगी फौज रखनेसे होती है, इसी लिए हमारी सरकारने शान्तिके समय भी इतनी जियादा फौज रक्खी कि उसकी चौथाई भी दूसरे देश नहीं रखते । इस बढ़े हुए फौनी खर्चके मारे हम पर खासा टैक्स लगता रहा और नहरों आदिके लिए एक पैसा भी सरकारके हाथ न बचा । सरकारने चाहे जान कर किया या उससे अनजानमें हुभा, पर देश भूखा हुआ है और तकलीफें बढ़ी हैं। ऊपर लिखे तीनों कारणोंने मिल कर प्रजाको इस हालतमें ला डाला है कि वह कलकत्ते और मदरासमें दंगे, लूट और झगड़े करने पर उतारू हुई । मदरासमें तो साफ ही अनाजकी मॅहगीसे तंग आकर लोगोंने लूट की और बड़े बड़े विचारजोका कहना है कि कलकत्तेका यह भारी दंगा भी मैंहगीका फल है । जो मँहगीके कारण लोग पहलेसे तंग न होते तो सभा For Private And Personal Use Only
SR No.020121
Book TitleBharat me Durbhiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshdatta Sharma
PublisherGandhi Hindi Pustak Bhandar
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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