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दुर्भिक्ष।
२२९ आगे रखेंगे, जिससे हमारे पाठकोंको इस वर्तमान महा भयंकर दुर्भिक्षका पता लग जायेगा। इस विषय में प्रायः सभी पत्रोंने लिखा है तथापि हम २-४ प्रसिद्ध पत्रोंके दुर्भिक्ष-क्रंदनको यहाँ लिखेंगे। "हिन्दी समाचार " दिल्ली ता. २४ सितम्बर १९१८ ई० के अंकमें लिखता है ?. सभी चीजें बेहद मँहगी हुई हैं, पर अनाजकी महँगीके कारण हमारे देशवासियों के कष्ट बहुत बढ़ गये । पिछले सौ वर्षोंमें जितना महँगा कभी नहीं हुआ था उतना अब हुआ है। उत्तर भारतमें पाँच सेर और दक्षिगमें अढाई सेरका अनाज है। बड़े बड़े शहरों में अकालका स्वरूप कुछ भी दिखाई नहीं देता--पर साधारण गाँवों और किसानोंकी बस्तियों में जाकर देखिए, बिना अन्न वहाँ हाहाकार मच रहा है। दिन रातमें एक बार भी जिनको भर पेट खानेको नहीं मिलता, उनकी तकलीफोंका अंदाजा मोटरों पर सैर करनेचाले अफसरोंकी अकलमें नहीं समा सकता। इस अकालका सबसे पहला कारण हिन्दुस्तानका अनाज यहाँसे बाहर भेजा जाना है। पिछले तीन सालमें जितना अनाज इस देशसे बाहर भेजा गया है उतना पहले कभी नहीं भेजा गया था। सरकारने अनाज पर कंट्रोल कर रक्खा है और रेलीबादरकी मारफत उसने देशका अनाज बहुत कुछ अपने हाथमें ले लिया है। हम बार बार कहते रहे हैं कि हम सरकारके अनाज बाहर भेजने का विरोध नहीं करते, वह लड़नेवालोंके लिए रसद भेजे, पर ३० करोड़ आदमियों के ३६० दिनके खाने लायक अनाज छोड़ कर बाकी जो हो वह भेजे । सरकारने ऐसा नहीं किया। एक विद्वानका कहना है कि इस समय जितना
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