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दुर्भिक्ष।
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र्पण करनेको उद्यत हों। हमें सर रिचर्ड टेम्युल सरीखे दुर्भिक्षके सगे भाई, अन्याई महाप्रभुओंकी आवश्यकता नहीं है, जिन्हें भारतकी दशाका ज्ञान तक भी नहीं होता । न जाने हमारी सरकार क्यों बिना सोचे-समझे ऐसे निर्दय, पाषाण-हृदय, भारतकी स्थितिसे निपट अज्ञान पुरुषोंको भारतमें शासक बना देती है !
कहते हैं एक बार, ( अँगरेजोंके शासनके पूर्व ) भारतमें दुर्भिक्ष पड़ा, तब तत्कालीन नरेशने प्रजाकी सहायताके लिये यह उत्तम उपाय सोचा कि दिनमें मजदूर-पेशा लोग मजदूरी लेकर एक इमारत तैय्यार करें, और इज्जतवाले मनुष्य जो इमारत बनाना नहीं जानते, और सबके सामने मजदूरी करना अपनी कम इज्जती समझते हैं और माँग कर भी नहीं खा सकते, रातको उस इमा. रतको फोड़ कर मजदूरी ले आवें। इस प्रकार दोनों प्रकारके लोगोंने अपने दुर्भिक्षक दिन आनन्द-पूर्वक बिता दिये ! __ आजकाल हमारी ब्रिटिश सरकार भी चाहे तो भारतवासियोंकी दुर्भिक्षसे रक्षा कर सकती है। ऐसे समयमें जब कि मजदूर बहुत
और सस्ते मिलते हों, सरकारको उनसे ऐसे ही काम कराने चाहिए जिनसे देशमें दुर्भिक्षकी कमी हो। जैसे नहर, कुएँ और तालाब खुदाने का काम । ये काम इतने अच्छे हैं कि कामका तो काम हो जाये और अनावृष्टिके समय दुर्भिक्षके दिन दृष्टि गोचर न हों। भारतवर्ष में आज तक बहुतसे रकबे बिना आबपाशीके पड़े हैं। सरकारका जितना ध्यान रेल-पथके विस्तारकी ओर है उतना नहरोंकी ओर भा होना चाहिए, ताकि भारतमें अनावृष्टि द्वारा दुभक्षि पड़नेका भय सदाके लिये दूर हो जाये । इससे गवर्नमेंटको लाभ
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