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दुर्भिक्ष ।
ऐसे मनुष्यातीस बता निक्षीको र
निस्टर कालिन्सने न्यूजीलैण्डके घोर दरिद्रोंकी दशा दिखा
नेके लिये लिखा है कि:" वे ऊँचेसे ऊँचे वृक्ष पर शहदके लिये या छोटी चिड़िया पकडनेके लिये चढ़ जाते हैं।"
कहिए क्या भारतमें ऐसे मनुष्योंकी कमी है ! शहद निकालना तो मामूली बात है, हमारे भारतवासी तो तीस पैंतीस गज ऊँचे ताड़ वृक्ष पर भी ताड़ी उतारनेको चढ़ जाते हैं । घोर दुर्भिक्षोंको छोड़ दीजिए, साधारण दुर्भिक्षोंमें, मैंने लोगोंको भूखों मरते अपने कलेजेके टुकड़े, प्राणसे प्यारे अबोध बालकोंको मार कर भून कर खाते देखा है, और थोड़ी देरमें वे भी मर गये हैं। पृथ्वीमेंसे केंचुए निकाल कर खाते देखा है । सापवाले सपेरोंको उनके पेट भरनेके साधन, जिससे वे तमाशा करके पैदा करते थे, भूखों मरते सॉपका सिर और पूंछ काट कर खाते देखा है । वृक्षोंकी छाल कूट-पीस कर रोटी बना कर खाते देखा है। चिऊँटी मकोड़ोंके बिलोंमें, वह घासका बीज और अन्न जो उन्होंने अपने खानेको संचित किया है, लोगोंको उसे खोद कर, निकाल कर खाते देखा है । अपने बालकोंको दो दो तीन तीन रोटियों में बेचते देखा है । " देशदर्शन" नामक पुस्तकके लेखक श्री० ठाकुर शिवनन्दनसिंहजीने लिखा है कि दुर्भिक्षके समय, एक स्त्री एक जगह सड़ी गली लकड़ीमेंसे कीड़े निकाल कर और उन्हें भून कर अपने बालकको खिला रही थी। पूछनेसे पता
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