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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विदेशी शक्कर। (१) विदेशी लोग रात दिन भारतीयोंकी भाँति मिठाई नहीं खाते, थोड़ी खाते हैं । खाते हैं तो पेटमें लूंस-ठूस कर नहीं खाते । भारतमें नित्य खाली भोजनके साथ, दूधमें, शरबतमें, हलुवे में बेहद शक्कर खाई जाती है। (२) विदेशी लोगोंमें आजकल सफाईकी और बहुत ध्यान है। शुद्ध जल, शुद्ध वायु, शुद्ध भवन उनके काममें आते हैं। (३) विदेशी मनुष्य बलवान भी हो चले हैं । हमारे देशवासी भयंकर दरिद्रता और दुर्भिक्षके कारण पौष्टिक पदार्थ नहीं खा सकते, अतः निर्बल होते जा रहे हैं। साथ ही बाल-विवाह आदि कई कारण भारतको बलहीन करने में कोई कसर नहीं रख रहे हैं। __भारतमें अमृत तुल्य गन्ने की शक्कर पुष्टिकारक पदार्थ है । इस देशके लिये विदेशी शक्कर कदापि उपयोगी नहीं हो सकती। शक्कर खानेका मुख्य हेतु रक्तको शुद्ध करना है और यह गुण सिवाय गन्ने की शक्करके अन्य किसीमें नहीं पाये जाते । कई बार देखा होगा कि औषधि प्रभृतिमें वैद्य देशी खाँड ही बताते हैं, क्योंकि विदेशी खाँड गुणशून्य और अवगुणका भण्डार है। हमारे देशमें विदेशी मिठाइया भी आती हैं, जो रंगीन, गोल, लम्बी, तिरछी, चौखूटी, तिखूटी आदि अनेक रूपोंकी होती हैं। हमारे भारतीय बन्धु प्रेम-पूर्वक अपने बालकोंको वही मिठाई बाजारसे खरीद खरीद कर खिलाते हैं--किन्तु उसमें प्राणहारी विष है, इस विषयमें हम अँगरेजोंके वाक्य उद्धृत करते हैं, जिन्होंने कई बाल. कोंकी मृत्युका कारण उपर्युक्त मिठाइयोंको बताया है “Every investigation that has been made into the colouring matters used by confec है। For Private And Personal Use Only
SR No.020121
Book TitleBharat me Durbhiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshdatta Sharma
PublisherGandhi Hindi Pustak Bhandar
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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