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पशु-धन ।
है । अन्तमें भूखों मरते अपनी गौएँ अपने हाथों जान-बूझ कर कसाइयोंके हाथ अल्प मूल्य पर देकर हम अपनी जठर-ज्यालाको शांत करते हैं। क्या इस भाँति गुजर करना गोमांस भक्षणसे किसी प्रकार कम है ? परन्तु " बुभुक्षितः किं न करोति पापम् ? मरता क्या न करता । अन्तमें अपने हिंदुत्वको हमें जलाञ्जलि दे देनी पड़ती है। दुर्भिक्षके कारण लोग भूखों मरते हैं, ईसाई हो जाते हैं और मांसभक्षियोंकी-गोमांस-भोगियोंकी-संख्या दिन प्रति दिन बढ़ती ही जाती है। यही कारण है कि “ अहिंसा परमो धर्मः" की दुहाई देनेवाला भारत, बुद्ध जैसे अहिंसा धर्मके प्रचारकको उत्पन्न करनेवाला भारत अपने उदरमें २० करोड़ मांस-भोजी लिये बैठा है ! हे श्रीकृष्णचन्द्र, हे गोपाल, तुम कहाँ हो, आओ अपनी प्यारी गोजाति तथा अपनी मातृभूमिकी शीघ्र रक्षा करो। यदुनाथ ! विलम्ब करोगे तो अच्छा न होगा ।
हम दिल्लीसे प्रकाशित होनेवाले - "हिन्दी-समाचार" के ता० १६ जुलाई सन् १९१९ के अंकमें प्रकाशित एक लेखको यही उद्धृत कर, अब इस विषयमें अधिक कुछ न लिखेंगे । कारण ठीक यही दशा सारे भारतवर्षकी है। ___" बच्चे, बूढों तथा निरामिष भोजियोंका एक मात्र बलवर्द्धक पदार्थ दूध, घी है। दिल्ली में बहुतसे नौ जवान ऐसे हैं, जिन्होंने अपने बाल्यकाल में रुपयेका सवा सेर घी तथा एक आने सेर शुद्ध दूध लिया है । परन्तु अब कई वर्षसे विशेषतः जबसे दिल्लीके सिर पर राजधानीकी कलगी लगी है, दूध, घीकी महँगीने अमीर गरीब सबका नाकमें दम कर रक्खा है।
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