SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 121
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतमें दुर्भिक्ष । पर भी वहाँ दूधका भाव एक आने सेरसे अधिकका नहीं होता; जब कि भारतमें, गाँवों या शहरों में कहीं पर भी दूधका भाव ६ आने सेर और ४ आने सेरके औसतसे कभी कम नहीं होता । बालकोंकी चढ़ी बढ़ी मृत्यु-संख्या, राजयक्ष्मा आदि भयंकर प्राण-नाशक रोगोंका प्रकोप, शरीरकी शक्तिका ह्रास और रोगसे आक्रान्त होने की संभावना ये सब यथेष्ट पुष्टिकारक भोज्य पदार्थके न मिलनेके ही कारण होते हैं । विशेष रूपसे दूधके अभावसे ही ये विपत्तिया घेरती हैं। ___ भारतीय राष्ट्रकी रक्षा और उन्नतिके लिये हम सबको उन सम्पूर्ण बातोंके दूर करनेकी चेष्टा करनी चाहिए जो शुद्ध और उत्तम दूधकी प्राप्तिमें विघ्न डाल रही हैं और दूधके भावको बेहद चढ़ाती हैं। हम यहाँ यह सिद्ध करनेका प्रयत्न करेंगे कि गो-पालन और गो-रक्षण ही भारतवासियोंकी दूधकी प्राप्तिकी समस्या हल करनेके लिये ठीक उपाय नहीं है, बल्कि भारतके अनेक शिक्षित और अशिक्षित नव युवाओंको लिये व्यवसायकी व्यवस्था कर देने का भी परमोत्तम साधन है। नीचेका लेखा पढ़नेसे यह बात स्पष्ट हो जायगी कि एक देहाती गायके द्वारा जो खालिस आमदनी होगी वह आमदनी एक ग्रेज्यूएट क्लार्क या एक स्कूल के मास्टरकी आमदनीके बराबर है । दो देहाती गायोंकी जितनी आमदनी होगी उतनी ही एक एम० ए० पास व्यक्तिकी, एक स्कूल के सेकण्ड मास्टरकी अथवा किसी ऑफिसके हेडक्लार्ककी आमदनी होगी। एक स्कूलका हेडमास्टर या प्रोफेसर या जूनियर मुंसिफ जितना पैदा कर सकता है उतना ही वह एक आदमी पैदा कर सकता है जिसके यहाँ चार गायें हैं। For Private And Personal Use Only
SR No.020121
Book TitleBharat me Durbhiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshdatta Sharma
PublisherGandhi Hindi Pustak Bhandar
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy