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भारतमें दुर्भिक्ष ।
कही हैं। बताया है कि जबर्दस्ती १ शिलिंग ४ पेंसका रुपया बनाये रखनेकी व्यवस्था पर प्रसन्नता प्रकट की जा रही है। पर सन् १९०७-९ ई० में और अब समरके कारण यह व्यवस्था नष्ट हो गई है। जब भारतसे जानेवाले मालके पक्षमें एक्सचेंजकी दर गिर रही थी, तब १ शिलिंग ४ पेन्स कर दी गई और जब वह बढ़ने लगी और उससे भारतीय व्यापारको हानि पहुँचने लगी तब दर बढ़ने दी गई; क्योंकि वैसा न करनेसे इंग्लैण्डसे आनेवाले मालको हानि पहुँचती। एक्सचेंज व्यवस्था पर कैसी सुंदर टीका है। नोटोंके विषयमें मि० सूबेदारका कहना है कि जब नोट चला कर सोना बचाया जाय और देशके उद्योग-धन्धोंके सहायतार्थ देशके बैंकोंमें रखा जाय, पर कम ब्याजपर दूसरोंको न दिया जाय, तब नोट चलानेसे किफायत होती है। हमें सब विषयों पर अपने देशके हितकी दृष्टिसे विचार करना चाहिए । इस महा समरके परिणामका इस देश पर बड़ा प्रभाव होगा। पर इसमें धन और जनका जो नाश हो चुका है, वह इस देशमें धन-जनके नाशके सामने कुछ भी नहीं है । अकेले दुर्भिक्षने भारतसे इतने मनुष्योंको यमपुरी भेजा है जितने युद्धक्षेत्रमें भी काम नहीं आये ! भारतकी अन्य देशोंकी तुलनामें मत्यु-संख्या बहुत अधिक है, इसका कारण प्लेग, हैज़ा-ज्वर आदि अनेक रोग तो हैं ही जो शारीरिक निर्बलताके कारण होते हैं, पर सबसे बड़ा कारण एक दुर्भिक्ष है । मि० सूबेदारका यह कहना उचित है कि समरकी अवधिमें ही भारत की स्थिति पर समुचित विचार होना चाहिए।
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