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क्षत्रप-वंश।
महाक्षत्रप था । परन्तु श० सं० ११० से ११२ तक यह फिर क्षत्रप हो गया था और श० सं० ११३ से ११८ या ११९ तक दुबारा महाक्षत्रप रहा था।
अब तक इसका कुछ भी पता नहीं चला है कि रुद्रसिंह महाक्षत्रप होकर फिर क्षत्रप क्यों हो गया । परन्तु अनुमानसे ज्ञात होता है कि सम्भवतः जीवदामाने उस पर विजय प्राप्त करके उसे अपने अधीन कर लिया होगा । अथवा यह भी सम्भव है कि यह किसी दूसरी शक्तिके हस्ताक्षेपका फल हो।
रुद्रसिंहके क्षत्रप उपाधिवाले श० सं० ११० के ढले चाँदीके सिक्कोंमें उलटी तरफ कुछ फरक है । अर्थात् चन्द्रमा, जो कि इस वंशके राजाओंके सिक्कों पर चैत्यकी बाई तरफ होता है, दहिनी तरफ है, और इसी प्रकार दाई तरफका तारामण्डल बाई तरफ है । परन्तु यह फरक श० सं० ११२ में फिर ठीक कर दिया गया है । अतः यह नहीं कह सकते कि यह फरक यों ही हो गया था या किसी विशेष कारणवश किया गया था। __ रुद्रसिंहके पहली बारके क्षत्रप उपाधिवाले सिक्कों पर “राज्ञो महाक्षत्रपस रुद्रदामपुत्रस राज्ञोक्षत्रपस रुद्रसीहस" और महाक्षत्रप उपाधिवालों पर “ राज्ञो महाक्षत्रपस रुदादाम्न पुत्रस राज्ञो महाक्षत्रपस रुद्रसीहस" अथवा 'रुद्रदाम्न पुत्रस 'के स्थानमें ' रुद्रदामपुत्रस' लिखा रहता है । तथा दूसरी बारके क्षत्रप उपाधिवाले सिक्कों पर “ राज्ञो महाक्षत्रपस रुद्रदाम्न पुत्रस राज्ञो क्षत्रपस रुद्रसीहस" और महाक्षत्रप उपाधिवालों पर " राज्ञो महाक्षत्रपस रुद्रदामपुत्रस राज्ञो महाक्षत्रपस रुद्रसीहस" अथवा ‘रुद्रदामपुत्रस' की जगह 'रुद्रदाम्नपुत्रस' लिखा होता है। तथा इन सबके दूसरी तरफ क्रमशः पूर्वोक्त शक-संवत् लिखे रहते हैं ।
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