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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतके प्राचीन राजवंश - नहपान । [श० सं० ४१-४६ (ई० स. ११९-१२४= वि०सं० १७६-१८१)] यह सम्भवतः भूमकका उत्तराधिकारी था । यद्यपि अबतक इस विष"यका कोई लिखित प्रमाण नहीं मिला है तथापि भूमकके और इसके सिक्कोंका मिलान करनेसे प्रतीत होता है कि यह भूमकका उत्तराधिकारी ही था। इसकी कन्याका नाम दक्षमित्रा था । यह शकवंशी दीनिकके पुत्र उषवदात (ऋषभदत्तकी ) की पत्नी थी । इसी दक्षमित्रासे उषवदातके मित्र देवणक नामक एक पुत्र हुआ था । हम पहले लिख चुके हैं कि उषवदातके ४ लेख मिले हैं । इनमेंसे ३ नासिकसे और १ कार्लेसे मिला है। इसकी स्त्री दक्षमित्राका लेख भी नासिकसे और इसके पुत्रका कार्लेसे ही मिला है । पूर्वोक्त लेखों से उषवदातके केवल एकही लेखमें शक-संवत् ४२ दिया हुआ है। परन्तु इसीमें पीछेसे शक-संवत् ४१ और ४५ भी लिख दिये गये हैं । उक्त लेखोंमें उपवदातको राजा क्षहरात क्षत्रप नहपानका जामाता लिखा है । परन्तु जुन्नरकी बौद्धगुफासे जो शक-संवत् ४६ ( ई० स० १२४-वि० सं० १८१ ) का नहपानके मन्त्री अयम ( अर्यमन् ) का लेख मिला है, उसमें नहपानके नामके पहले राजा महाक्षत्रप स्वामीकी उपाधियाँ लगी हैं । इससे प्रकट होता है कि उससमय-अर्थात् शक-संवत् ४६ में-यह नहपान स्वतन्त्र राजा हो चुका था । ___ इसका राज्य गुजरात, काठियावाड़, कच्छ, मालवा और नासिकतकके दक्षिणके प्रदेशोंपर फैला हुआ था। इस बातकी पुष्टि इसके जामाता उषवदात ( ऋषभदत्त ) के लेखसे भी होती है । For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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