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भारतके प्राचीन राजवंश
नामकरण न होकर, इसे प्रसिद्धिमें लानेवाले शकोंके नाम पर हुआ, तो किसी प्रकारकी गड़बड़ न होगी । यह बात सम्भव भी है । परन्तु अभी तक पूरा निश्वय नहीं हुआ है ।
बहुत से विद्वान इसको प्रतिष्ठानपुर ( दक्षिणके पैठण) के राजा शालिवाहन ( सातवाहन ) का चलाया हुआ मानते हैं । जिनप्रभसूरि-रचित कल्पप्रदीपसे भी इसी मतकी पुष्टि होती है ।
अलबेरुनीने लिखा है कि शक राजाको हरा कर विक्रमादित्यने ही उस विजयकी यादगारमें यह संवत् प्रचलित किया था ।
कच्छ और काठियावाड़से मिले हुए सबसे पहले के शक संवत् ५२ से १४३ तक के क्षत्रपोंके लेखों में और करीब शक संवत् १०० से शक संवत् ३१० तकके सिक्कोंमें केवल संवत् ही लिखा मिलता है, उसके साथ साथ 'शक' शब्द नहीं जुड़ा रहता ।
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पहले पहल इस संवत् के साथ शक - शब्दका विशेषण वराहमिहिररचित संस्कृतकी पञ्चसिद्धान्तिक में ही मिलता है । यथा
सप्ताश्विवेदसंख्यं शककालमपास्य चैत्रशुक्लादौ "
१२६२ तक के लेखों
इससे प्रकट होता है कि ४२७ वें वर्ष में यह संवत् शक संवत् के नाम से प्रसिद्ध हो चुका था । तथा शक संवत् और ताम्रपत्रोंसे प्रकट होता है कि उस समय तक लिखा जाता था; जिसका ' शक राजाका संवत् ये दोनों ही अर्थ हो सकते हैं ।
यह शक संवत् ही
या शकोंका संवत्
' ,
शक संवत् १२७६ के यादव राजा बुक्कराय प्रथमके दानपत्रमें इसी संवत् के साथ शालिवाहन ( सातवाहन ) का भी नाम जुड़ा हुआ मिला है । यथा
( १ ) Eg. Ind., Vol. VIII, p. 42.
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