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भारतके प्राचीन राजवंश
अधिकारमें रहा। इसके बाद महाराणा हम्मीरसिंहने; जिसको मालदेवने अपनी लड़की ब्याही थी, धोखा देकर उस किलेपर अधिकार कर लिया। इसपर मालदेव मय अपने जेसा, कीर्तिपाल और वनवीर नामक तीन पुत्रोंके हम्मीरसे लड़नेको प्रस्तुत हुआ, परन्तु हम्मीरद्वारा हराया जाकर मारा गया। अन्तमें वनवीर हम्मीरकी सेवामें जा रहा और उसने उसे नीमच, जीरुन, रतनपुर और खेराड़का इलाका जागीरमें प्रदान किया तथा कुछ समय बाद वनवीरने भैंसरोड़पर अधिकार कर लिया और चम्बलकी तरफका वह प्रदेश फिर मेवाड़ राज्यमें मिला दिया ।"
आगे चलकर मता नैणसी लिखता है कि “ मारवाड़के राव रणमलने नाडोलमें कान्हड़देवके वंशजोंको एक साथ ही कल करवा डाला । केवल वनवीरका पौत्र और राणका पुत्र लोला जो कि उस समय माके गर्भमें था वहीं एक बचा। उसके वंशजोंने मेवाड़ और मारवाड़के राजा
ओंकी सेवामें रह फिरसे जागीरें प्राप्त की।" ___ कर्नल टौडने अपने राजस्थानके इतिहासमें लिखा है कि “ मालदेवने अपनी विधवा लड़कीका विवाह महाराणा हम्मीरके साथ किया था । " परन्तु यह बात बिल्कुल ही निर्मूल विदित होती है । क्यों कि जब राजपूतानेमें साधारण उच्च कुलोंमें भी अब तक इस बातसे बड़ी भारी हतक समझी जाती है, तब उक्त घटनाका होना तो बिलकुल ही असम्भव प्रतीत होता है।
तवारीख-ए-फरिश्तामें लिखी है:
"आखिरकार चित्तौड़को अपने कब्जेमें रखना फजूल समझ सुलतानने खिजरखानको उसे खाली कर राजाके भानजेको सौंप देनेकी आज्ञा दे दी। उक्त हिन्दू राजाने थोड़े ही समयमें उस प्रदेशको फिर अपनी अगली हालत पर पहुंचा दिया और सुलतान अलाउद्दीनक सामन्तकी हैसियतसे बराबर वहाँका प्रबन्ध करता रहा ।” (१) Brigg's Farishta. Vol. II, p. 363,
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