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नाडौल और जालोरके चौहान ।
यह बलवान होनेके कारण अणहिल्लपुर (अणहिलपाटण-गुजरात ) में भी सुखसे रहता था। ___ इससे प्रकट होता है कि यह उस समय चौलुक्योंके प्रधान सामन्तोंमें था । वि० सं० ११४७ ( ई०स० १०९० ) के इसके समयके दो लेख मिले हैं । इनमेंसे पहला सादडी और दूसरों नाडोलसे मिला है। इसने भी नाडोलमें जोजलेश्वर महादेवका मन्दिर बनवाया था।
११-रायपाल। ___ यद्यपि इसका नाम नाडोलके ताम्रपत्र और सूंघाके लेखमें नहीं दिया है, तथापि वि० सं० ११९८ श्रावणकृष्णा ८ और वि० सं० १२०० भाद्रपद कृष्णा ८ के इसीके समयके लेखोंमें “ महाराजाधिराज श्रीरायपालदेवकल्याणविजयराज्ये” लिखा है । इससे प्रकट होता है कि उस समय नाडोलपर इसका अधिकार था । परन्तु जोजलदेवका और इसका क्या सम्बन्ध था, इस बातका पता उक्त लेखोंसे नहीं लगता। सम्भव है यह जोजलदेवका पुत्र हो और जिस प्रकार कुँवर कीर्तिपालके ताम्रपत्रमें पृथ्वीपाल और जोजलदेवके नाम छोड़ दिये हैं उसी प्रकार इसका नाम भी छोड़ दिया गया हो तो आश्चर्य नहीं।
इसके समयके ३ लेख नाडलाई और नाडोलसे और भी मिले हैं। यथा-वि० सं० ११८९ ( ई० स० ११३२ ) का, वि० सं० ११९५ ( ई० सं० ११३८) का और वि०सं० १२०२ ( ई०स० ११४५) का।
१२-अश्वराज । यह जेन्द्रराजका छोटा पुत्र और अपने बड़े भाई जोजलदेवका उत्तराधिकारी था। (१-२) Ep. Ind., Vol. XI, P. 26-28.
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