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रणथम्भोरके चौहान।
७-हम्मीर । यह जैत्रसिंहका पुत्र था और उसके जीतेजी राज्यका स्वामी बना दिया गया। __ हम्मीर-महाकाव्यमें इसके गद्दीपर बैठनेका समय वि० सं० १३३९ लिखा है। परन्तु प्रबन्धकोशके अन्तकी वंशावलीसे वि० सं० १३४२ में इसका राज्याधिकारी होना प्रकट होता है । ___ यह राजा बड़ा वीर और प्रतापी था। इसकी वीरताका एक श्लोक हम यहाँपर उद्धृत करते हैं:
वयस्याः क्रोष्टारः प्रतिशृणुत बद्धोऽञ्जलिरियं किमप्याकांक्षामः क्षरति न यथा वीरचरितम् । मृतानामस्माकं भवतु परवश्यं वपुरिदं
भवद्भिः कर्तव्यौ नहि नहि पराचीनचरणौ ॥ अर्थात्-हे शृगालो ! युद्धमें मरनेपर मेरा शरीर चाहे परायेके अधीन हो जाय पर तुमसे यही प्रार्थना है कि तुम मरे हुए मेरे शरीरको अगाडीकी तरफ ही खींचकर ले जाना ताकि उस समय भी मेरे पैर पीछेकी तरफ न हों।
इससे पाठक इसकी वीरताका अनुमान कर सकते हैं। इसका हठ भी बड़ा मशहूर है । फ्रांस देशके प्रतापी नैपोलियनकी तरह यह भी जिस बातका विचार कर लेता था उसे करके ही छोड़ता था। इसीकी योतक, भाषामें निम्नलिखित कहावत प्रसिद्ध है:'तिरिया-तेल हमीर-हठ चढ़े न दूजी बार।'
अर्थात्-स्त्रीका विवाहके पूर्वका तैलाभ्यङ्ग और हम्मीरका हठ दूसरी दफा फिर नहीं हो सकता। हम्मीर-महाकाव्यमें इसका वृत्तान्त इस प्रकार लिखा है:--
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