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रणथम्भोरके चौहान।
फरिश्ताका यह लेख केवल मुसलमानों की हारको छिपानेके लिये ही लिखा गया है । क्यों कि तबकाते नासिरी उसी समयकी बनी होनेसे अधिक विश्वासयोग्य है ।
तबकाते नासिरीमें आगे चलकर लिखा है कि, “ नासिरुद्दीन महमूदशाहके समय हि० सं० ६४६ (वि० सं० १३०६-ई० स० १२४९) में उलगखां, बड़ी भारी सेनाके साथ, हिन्दुस्तानके सबसे बड़े राजा बाहड़देवके देशको व मेवाड़के पहाड़ी प्रदेशको नष्ट करनेकी इच्छासे, रणथंभोरकी तरफ भेजा गया । वहाँ पहुँच उसने उस देशको नष्ट कर अच्छी तरहसे लुटा । उक्त हिजरी सनके जिलहिज महीनेमें उलगखांके साथका मलिक बहाउद्दीन ऐबक रणथंभोरके किलेके पास मारा गया। उलगसांके सिपाही बहुतसे हिन्दुओंको मार दिल्लीको लौट गये ।”
“फिर हि० स० ६५१ (वि० स० १३१०-ई० स० १२५३) में उलगखां नागोर गया और वहाँसे ससैन्य रणथंभोरकी तरफ रवाना हुआ। जब यह वृत्तान्त हिदुस्तानके सबसे बड़े प्रसिद्ध वीर और कुलीन राजा बाहड़देवने सुना तब इसने उलगखांको हराने के लिए फौज एकत्रित की। यद्यपि इसकी सेना बहुत बड़ी थी, तथापि बहुतसा सामान आदि छोड़कर इसको मुसलमानोंके सामनेसे भागना पड़ो।”
उपर्युक्त बातोंसे विदित होता है कि रणथंभोर पर मुसलमानोंने दो बार हमला किया, जिसमें पहली बार उनको हारना पड़ा और दूसरी बार उनकी विजय हुई । परन्तु पिछली बार भी उलगखां केवल देशको लूटकर ही लौट गया आरै रणथंभोरपर चौहानोंका अधिकार बना ही रहा । __ हम्मीर-महाकाव्यमें इसका १२ वर्ष राज्य करना लिखा है । परन्तु यह ठीक नहीं प्रतीत होता । क्योंकि हि० स० ६३४ (वि० स० १२९४
(२) Eliot's History of India, Vol. II, 367. (२) Eliot's History of India, Vol. II.
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