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चौहान वंश |
मचे ' ललित-विग्रहराज ' नाटकको शिलाओंपर खुदवाकर रखवाया था। उक्त सोमेश्वररचित 'ललित-विग्रहराज' का जो अंश मिला है उसमें विग्रहराजकी मुसलमानों के साथकी लड़ाईका वर्णन है । इससे प्रकट होता है कि इसकी सेनामें १००० हाथी, १००००० सवार और १०००००० पैदल सिपाही थे ।
इसकी बनाई उपर्युक्त पाठशाला आजकल अजमेर में 'ढाई दिनका झोपड़ा' नामसे प्रसिद्ध है । वि० सं० १२५० ( ई० स० ११९३ ) में शहाबुद्दीन गोरीने इस पाठशालाको नष्ट कर डाला और वि०सं० १२५६ (१९९९) में यह मसजिद में परिणत कर दी गई। तथा शम्सुद्दीन अल्तमश के समय उसके आगे कुरान की आयतें खुदे बड़े बड़े महाराब बनवाये गये ।
इसका बनाया हरकेलि नामक नाटक वि० सं० १२१० ( ई० स० १९५३ ) की माघ शुल्का ५ को समाप्त हुआ था । हम पहले ही लिख चुके हैं कि इसने हरकेलि नाटक और ललितविग्रहराज नाटक दोनोंको शिलाओंपर खुदवाकर उक्त पाठशालामें रखवाया था । उनमें से ढाई दिन के झोंपड़े में खुदाई के समय ५ शिलायें प्राप्त हुई थीं। ये आजकल लखनऊके अजायबघर में रक्खी हैं ।
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ख्यातोंमें प्रसिद्धि है कि बहुतसे हिन्दू राजाओंने मिलकर बीसलदेवकी अधीनतामें मुसलमानोंसे युद्धकर उन्हें परास्त किया था । सम्भवतः यह घटना इसीके समयकी प्रतीत होती है । परन्तु यह युद्ध किस बादशाह के साथ हुआ था, इसका उल्लेख कहीं नहीं मिलता है । हिजरी सन् ५४७ ( वि० सं० १२१० - ई० स० ११५३ ) के करीब बादशाह खुसरोको भाग कर लाहोरकी तरफ आना पड़ा और हि० स० ५५५ ( वि० सं० १२१७ - ई० स० ११६० ) में उसका देहान्त हो जानेपर उसका पुत्र खुसरो मलिक पंजाबका राजा हुआ । अतः सम्भव है कि
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