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भारतके प्राचीन राजवंश
तारीख फरिश्तासे हिजरी सन् ६३ ( ई० स० ६८३ - वि० सं० ७४० ), ३७७ ( ई० स० ९८७ - वि० सं० १०४५ ) और ३९९ ( ई० स०१००९ - वि० स० १०६६ ) में अजमेरका विद्यमान होना सिद्ध होता है । उसमें यह भी लिखा है कि हि० स० ४१५ के रमजान ( ई० स० १०२४ के दिसंबर) महीने में महमूद गोरी मुलतान पहुँचा और वहाँसे सोमनाथ जाते हुए उसने मार्गमें अजमेरको फतह किया ।
बहुत से विद्वान् हम्मीर महाकाव्य, प्रबन्धकोश और तारीख फरिश्ता आदिके वि० सं० १४५० के बादमें लिखे हुए होनेसे उन पर विश्वास नहीं करते। उनका कहना है कि एक तो १२ वीं शताब्दि के पूर्वका एक भी लेख या शिल्पकलाका काम यहाँ पर नहीं मिलता है, दूसरे फरिश्ता के पहले के किसी भी मुसलमान लेखकने इसका नाम नहीं दिया है और तीसरा वि० सं० १२४७ ( ई० स० ११९० ) के करीब बने हुए पृथ्वीराज-विजय नामक काव्यमें पृथ्वीराजके पुत्र अजयदेवको अजमेरका बनानेवाला लिखा है ।
अजमेर के आसपाससे इसके चाँदी और ताँबे के सिक्के मिलते हैं । इन पर सीधी तरफ लक्ष्मीकी मूर्ति बनी होती है । परन्तु इसका आकार बहुत मद्दा होता है । और उलटी तरफ 'श्रीअजयदेव ' लिखा होता है। चौहान राजा सोमेश्वर के समय के वि० सं० १२२८ ( ई० स० ११७१ ) के लेख से विदित होता है कि अजयदेवके उपर्युक्त द्रम्म ( चांदी के सिक्के ) उस समय तक प्रचलित थे ।
इसी प्रकार के ऐसे भी चाँदी के सिक्के मिलते हैं; जिन पर सीधी तरफ लक्ष्मीकी मूर्ति बनी होती है और उलटी तरफ ' श्रीअजयपालदेव ' ( १ ) यह लेख धौडगाँवके विश्वमन्दिरमें लगा है । यह गाँव मेवाड़ राज्य के जहाजपुर जिलेमें है ।
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