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भारतके प्राचीन राजवंश
पृथ्वीराजरासेमें वीसलदेव द्वारा गौरी नामक एक वैश्य-कन्याका • सतीत्व नष्ट करना और उसके शापसे इसका ढुंढा राक्षस होना लिखा है।
यद्यपि इस वंशमें वीसलदेव नामके चार राजा हुए हैं, तथापि पृथ्वीराजरासाके कर्ताने उन सबको एक ही खयालकर इन चारोंका वृत्तान्त एक ही स्थानपर लिख दिया है । इससे बड़ी गडबड़ हो गई है।
इसके समयका एक लेख मिला है। यह राजपूताना-म्यूजियम, (अजायबघर ) अजमेरमें रक्खा है। इसमें इनको सूर्यवंशी लिखा है।
२३-पृथ्वीराज (प्रथम)। यह वीसलदेवका पुत्र और उत्तराधिकारी था।
प्रसिद्ध जैनसाधु अभयदेव ( मलधारी ) के उपदेशसे रणस्तम्भपुर ( रणथंभोर ) में इसने एक जैन-मन्दिर पर सुवर्णका कलश चढ़बाया था। इसकी रानीका नाम रासच्चुदवि था।
२४-अजयदेव। यह पृथ्वीराजका पुत्र और उत्तराधिकारी था । इसका दूसरा नाम अजयराज था।
पृथ्वीराज-विजयमें लिखा है कि वर्तमान ( अजयमेरु ) अजमेर इसीने बसाया था। इसने चाचिक, सिन्धुल और यशोराजको युद्धमें हराकर मारा और मालवेके राजाके सेनापति सल्हणको युद्धमें पकड़ लिया तथा उसे ऊँटपर बाँधकर अजमेरमें ले आया और वहाँपर कैद कर रक्खा । इसने मुसलमानोंको भी अच्छी तरहसे हराया था ।
अजमेर नगरके बसाये जानेके विषयमें भिन्न भिन्न पुस्तकोंमें भिन्न भिन्न मत मिलते हैं:
(१) Pro. Petterson's 4 th report, P. 87.
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