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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( २३ ) जरशस्त इतिख्यातो वचाथख्यातिमागतः । पुनश्च भूयः संप्राप्य यथायं लोकपूजितः ॥ भोजकन्या सुजातत्वाद्भोजकास्तेन ते स्मृताः ॥ आदित्यशर्मा यः लोके वचार्थाख्यातिमागताः ॥ इसी विषय में बंबई में छपे भविष्यपुराण में इस प्रकार लिखा है: जरशब्द इतिख्यातो वंशकीर्तिविवर्धनः ॥ ४४ ॥ अग्निजात्यामघाप्रोक्ताः सोमजात्या द्विजातयः । भोजकादित्य जात्याहि दिव्यास्ते परिकीर्तिताः ॥ ४५ ॥ - अध्याय १३९ आगे चलकर उसीके अध्याय १४० में लिखा है: Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भोजकन्या सुजातत्वाद्भोजकास्तेन ते स्मृताः ॥ ३५ ॥ ज़रका अर्थ बड़ा नामवाला होता है । "" बहुत से ऐतिहासिक ज़रशस्त, मग और शाकद्वीपी शब्दोंसे इनका पारसी होन मानते हैं: क्यों कि ज़रशस्त ( ज़रदस्त ) पारसियोंके पैगम्बरका नाम था । इसीने ईरान में आगकी पूजा चलाई थी; जिसको पारसी लोग अबतक करते आते हैं। शेखसादीने आग पूजनेवालेका नाम मग लिखा है: अगर सद साल मग आतिश फ़रोज़द । चो आतिश अंदरो उफ़तद विसोज़द ॥ * इस बारे में अधिक देखना हो तो मारवाड़की जातियोंकी रिपोर्टमें देख सकते हैं चौहान वंश | सेनवंशके बाद चौहानवंश है । ये ( चौहान ) भी अपनेको पवारोंकी तरह अग्निवंशी समझते हैं । शिलालेखोंमें इनका सूर्यवंशी होना भी लिखा मिलता है । राजपूताने में पहले पहल इनका राज्य साँभरमें हुआ था। इससे ये लोग साँभरी चौहान कहलाने लगे । इसके पूर्व ये स्वालखिया चौहान कहलाते थे । इससे पाय For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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