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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org भारतके प्राचीन राजवंश समय सपादलक्षके नामसे प्रसिद्ध था । इसीका अपभ्रंश ' सवालक शब्द अबतक अजमेर, नागोर और सांभर के लिये यहाँ पर प्रचलित है ! सपादलक्ष शब्द का अर्थ सवालाख है । अतः सम्भव है कि उस समय इनके अधीन इतने ग्राम हों । इसके बाद इन्होंने अजमेर बसाकर वहाँपर अपनी राजधानी कायम की । तथा इन्हींकी एक शाखाने नाडोल ( मारवाड़ में ) पर अपना अधिकार जमाया । इसी शाखाके वंशज अबतक बूँदी, कोटा और सिरोही राज्य के अधिपति हैं । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १ - चाहमान | इस वंशका सबसे पहला नाम यही मिलता है । इसके विषय में जो कुछ लिखा मिलता है वह हम पहले ही इनकी उत्पत्तिके लेख में लिख चुके हैं । २- वासुदेव | यह चाहमानका वंशज था । अहिच्छत्रपुर से आकर इसने शाकंभरी ( सांभर - मारवाड़ राज्य में } की झीलपर अधिकार कर लिया था । इसीसे इसके वंशज शाकम्भरीश्वर कहलाये' | प्रबन्धकोशके अन्तकी वंशावली में इसका समय संवत् ६०८ लिखा है | अतः यदि उक्त संवत्‌को शक संवत् मान लिया जाय तो उसमें १३५ जोड़ देने से वि० सं० ७४३ में इसका विद्यमान होना सिद्ध होता है । ३ - सामन्तदेव | यह वासुदेवका पुत्र और उत्तराधिकारी था । (१) पृथ्वीराज - विजय, सर्ग ३ | २२८ For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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