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भारतके प्राचीन राजवंश
हम्मीर महाकाव्य ' नामक काव्य बनाया था । यह नयचन्द्र जैनसाधु था और इसने उक्त काव्यकी रचना वि० सं० १४६० ( ई० स० १४०३ ) के करीब की थी । उसमें लिखा है:
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पुष्कर क्षेत्र में यज्ञ प्रारम्भ करते समय राक्षसों द्वारा होनेवाले विघ्नोंकी आशङ्का से ब्रह्माने सूर्यका ध्यान किया। इस पर यज्ञके रक्षार्थ सूर्यमण्डल से उतर कर एक वीर आपहुँचा । जब उपर्युक्त यज्ञ निर्विघ्न समाप्त हो गया, तब ब्रह्माकी कृपासे वह वीर चाहमान नाम से प्रसिद्ध होकर राज्य करने लगा ।
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पृथ्वीराज - विजय नामक काव्यमें भी इनको सूर्यवंशी ही लिखा है । मेवाड़राज्य में बीजोल्या नामक गाँव के पासकी एक चट्टान पर वि० सं० १२२६ ( ई० स० ११७० ) का एक लेख खुदा हुआ है । यह चौहान सोमेश्वर के समयका है । इसमें इनको वत्सगोत्री लिखा है ।
मारवाड़राज्य में जसवन्तपुरा गाँवसे १० मील उत्तरकी तरफ एक पहाड़ी के ढलावमें 'सुंधा माता' नामक देवीका मन्दिर है । उसमें के वि० सं० १३१९ ( ई० स० १२६३ ) के चौहान चाचिगदेवके लेखमें भी चौहानोंको वत्सगोत्री लिखा है । उसमेंका वह श्लोक यहाँ उद्धृत किया जाता है:
श्रीमद्वत्समहर्षिहर्ष नयनोद्भूतांबुपूरप्रभा पूर्वोर्वीधर मौलिमुख्य शिखरालंकारतिग्मद्युतिः । पृथ्वीं त्रातुमपास्तदैत्यतिमिरः श्रीचामानः पुरा
वीरःक्षीरसमुद्रसोदरयशोरराशिप्रकाशोभवत् ॥ ४ ॥
उपर्युक्त लेखोंसे स्पष्ट प्रकट होता है कि उस समय तक ये अपनेको अग्निवंशी या वशिष्ठगोत्री नहीं मानते थे ।
पहले पहल इनके अग्निवंशी होनेका उल्लेख 'पृथ्वीराजरासा ' नामक भाषा के काव्य में मिलता है । यह काव्य वि० सं० १६०० ( ई० स०
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