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सेन-वंश।
दनुजराय बादशाहसे जा मिला । वहाँ पर इन दोनोंमें यह सन्धि हुई कि दनुजराय तुगरलको जलमार्गसे न भागने दे।
यह घटना १२८० ईसवी (विक्रमी संवत् १३३७) के करीब हुई थी। इसलिए उस समय तक दनुजरायका जीवित होना और स्वतन्त्र राजा होना पाया जाता है। ___ डाक्टर वाइजका अनुमान है कि यह बल्लालसेनका पौत्र था । परंतु इसका लक्ष्मणसेनका पौत्र होना अधिक सम्भव है। यह विश्वरूपसेनका पुत्र भी हो सकता है। परन्तु अब तक इस विषयका कोई निश्चित प्रमाण नहीं मिला।
जनरल कनिङ्गहामका अनुमान है कि यह भूइहार ब्राह्मण था । परन्तु घटकोंकी कारिकाओंमें और अबुलफज़लकी आईने अकबरीमें इसको सेनवंशी लिखा है।
अन्य राजा। घटकोंकी कारिकाओंसे पाया जाता है कि दनुजरायके पीछे रामवल्लभराय, कृष्णवल्लभराय, हरिवल्लभराय और जयदेवराय चन्द्रद्वीपके राजा हुए। जयदेवके कोई पुत्र न था। इसलिए उसका राज्य उसकी कन्याके पुत्र (दौहित्र ) को मिला।
समाप्ति । इस समय बङ्गालमें मुसलमानोंका राज्य उत्तरोत्तर वृद्धि कर रहा था। इस लिए विक्रमपुरकी सेनवंशी शाखावाला चन्द्रद्वीपका राज्य जयदेवरायके साथ ही अस्त हो गया।
(१) Elliot's History, Vol. III, p. 118. (२)J.B. A.S., 1874 p. 83.
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