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सेन-वंश ।
लिखा है कि नेपाल संवत् ४४४, अर्थात् शक-संवत् १२४५, में सूर्यवंशी हरिसिंहदेवने नेपाल पर विजय प्राप्त किया । इससे नेपाली संवत् और शकसंवत्का अन्तर ८०१ ( विक्रम संवत्का ९३६ ) आता है ।
डाक्टर ब्रामलेके आधार पर प्रिन्सेप साहबने लिखा है कि नेवर (नेपाल ) संवत् आक्टोबर ( कार्तिक ) में प्रारम्भ हुआ और उसका ९५१ वाँ वर्ष ईसवी सन १८३१ में समाप्त हुआ था। इससे नेपाली संवत्का और ईसवी सनका अन्तर ८८० आता है । डाक्टर कीलहानने भी नेपालमें प्राप्त हुए लेखों और पुस्तकोंके आधार पर, गणित करके, यह सिद्ध किया है कि नेपाली संवत्का आरम्भ २० आक्टोबर ८७९ ईसवी ( विक्रम संवत् ९३६, कार्तिक शुक्ल १) को हुआ था ।
विजयसेनके समयमें गौड़-देशका राजा महीपाल ( दूसरा ), शूरपाल या रामपालमें से कोई होगा । इनके समयमें पाल-राज्यका बहुतसा भाग दूसरोंने दबा लिया था । अतः सम्भव है, विजयसेनने भी उससे गौड़देश छीन कर अपनी उपाधि गौड़ेश्वर रक्खी हो ।' इसके पुत्रका नाम बल्लालसेन था ।
४ बल्लालसेन । यह विजयसेनका पुत्र और उत्तराधिकारी था । इस वंशमें यह सबसे प्रतापी और विद्वान हुआ, जिससे इसका नाम अब तक प्रसिद्ध है। महाराजाधिराज और निश्शङ्कशङ्कर इसकी उपाधियाँ थीं । वि०सं० ११७६ ( ई०स० १११९) में इसने मिथिला पर विजय प्राप्त किया । उसी समय इसके पुत्र लक्ष्मणसेनके जन्मकी सूचना इसको मिली।
(१) प्रिन्सेप्स एण्टिविटीज, यूजफुल टेबल्स, भाग २, पृ० १६६.(२) Ind. Ant. Vol. XVII, P. 246. (३) अबुलफजलने बल्लालके पिता इसी विजयसे. नसे इनकी वंशावली लिखी है परन्तु विजयसेनकी जगह उसने सुखसेन लिखा है।
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