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भारतके प्राचीन राजवंश
कम्प-वंशी शिखर ( यह हस्ति-युद्धमें बड़ा निपुण था), भास्कर और प्रताप आदि अनेक सामन्त इकट्ठे हो गये । इनके सिवा दो बड़े योद्धा पीठिका देवरक्षित और सिन्धुराज भी आ पहुँचे । सब तैयारियाँ हो जाने पर गङ्गाको पार करके रामपाल ससैन्य वारेन्द्र-देशमें पहुँचा। वहाँ पर बड़ी वीरतासे भीमने इनका सामना किया। परन्तु अन्तमें वह हराया और कैद कर लिया गया। इससे उसकी बड़ी दुर्दशा हुई । कैवतौकी सब सेना भी नष्ट कर दी गई । ”
वैद्यदेवके ताम्रपत्रमें लिखा है कि “रामपालने भीमको मार कर उसका मिथिला देश छीन लिया।" रामपालके मन्त्रीका नाम बोधिदेव था। वह पूर्वोक्त योगदेवका पुत्र थी।
रामपालके राज्यके दूसरे वर्षका एक लेख विहार (दण्ड-बिहार ) में और बारहवें वर्षका चण्डियौमें मिला हैं। इसके पुत्रका नाम कुमारपाल था ।
. १७-कुमारपाल । यह रामपालका पुत्र और उत्तराधिकारी था। इसके प्रधान मन्त्रीका नाम वैद्यदेव था । यह पूर्वोक्त बोधिदेवका पुत्र था। पूर्ण स्वामिभक्त और वीर होनेके कारण यह कुमारपालका पूर्ण विश्वासपात्र भी था। वैद्यदेवने दक्षिणी वङ्गदेशके युद्धमें विजय-प्राप्ति की और अपने स्वामीके राज्यको अखण्ड बना रक्खा । इसके समयमें कामरूपके राजा तिङ्गन्यदेवने बगावत शुरू कर दी। इस पर कुमारपालने कामरूपका राज्य वैद्यदेवको दे दिया । तब तिङ्ग-यदेवको परास्त करके उसके राज्यपर वैद्यदेवने अपना कब्जा कर लिया । वैद्यदेवने प्राग्ज्योतिषभुक्ति ( काम
(१) Ep. Ind., Vol. II, p. 348-349. (२)C. A. S., Vol. III, P, 124, and Vol. II, p. 169.
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