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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पाल-वंश। ८-राज्यपाल । यह नारायणपालका पुत्र और उत्तराधिकारी था । इसकी स्त्री, भाग्यदेवी, राष्ट्रकूट ( राठौर ) राजा तुड़की कन्या थी। इससे गोपाल (दूसरा) उत्पन्न हुआ। यह राजा तु धर्मावलोक नामसे विख्यात था। इसके पिताका नाम कीर्तिराज और दादाका नाम नन्न-गुणावलोक था। तुङ्गाके समयका एक लेखे बुद्ध गया में मिला है। ९-गोपाल (दूसरा)। यह राज्यपालका पुत्र और उत्तराधिकारी था । इसके पुत्रका नाम । विग्रहपाल (दूसरा) था। १०-विग्रहपाल (दूसरा)। यह गोपाल ( दूसरे ) का पुत्र था । पिताके पीछे यही गद्दी पर बैठा । इसके पुत्रका नाम महीपाल था। ११-महीपाल (पहला)। यह विग्रहपाल (दूसरे ) का पुत्र और उत्तराधिकारी था । इसके समयका ( विक्रम संवत् १०८३) का एक शिला-लेखं सारनाथ ( बनारस ) में मिला है । उसमें लिखा है कि गौड़ ( बङ्गाल) के राजा महीपालने स्थिरपाल और उसके छोटे भाई वसन्तपाल द्वारा काशीमें अनेक मन्दिर आदि बनवाये; धर्मराजिक (स्तूप ) और धर्मचक्रका जीर्णोद्धार कराया और गर्भ-मन्दिर, जिसमें बुद्धकी मूर्ति रहती है नवीन वनवाया । ये स्थिरपाल और वसन्तपाल, सम्भवतः, महीपालके . छोटे पुत्र होंगे। हम पहले ही लिख चुके हैं कि पालवंशियोंके लेखोंमें बहुधा उनके राज-वर्ष ही लिखे मिलते हैं । यही एक ऐसा लेख है जिसमें विक्रमसंवत् लिखा हुआ है। (१) R. M. B. G., P. 15. (२) Ind. Ant., Vol. XIV, P. 140. - - १८९ For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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