________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पाल-वंश।
नारायणपालके समयके भागलपुरके ताम्रपत्रमें देवपालके उत्तराधिकारी विग्रहपालको देवपालके भाई जयपालका पुत्र लिखा है । राज्यपालका नाम इनकी वंशावलीमें नहीं है । अतएव, सम्भव है, राज्यपाल जयपालका पुत्र हो; और, देवपालने उसे गोद लिया हो; एवं गद्दी पर बैठनेके समय वह विग्रहपालके नामसे प्रसिद्ध हुआ हो। आज कल भी रजवा- . डॉमें बहुधा गोद लिये हुए पुत्रका नाम बदले देनेकी प्रथा चली आती है । यदि यह अनुमान सत्य न हो तो यही मानना पड़ेगा कि राज्यपाल अपने पिता देवपालके पहले ही मर गया होगा । परन्तु पहले इसी प्रकार त्रिभुवनपालका हाल लिखा जा चुका है । उसमें भी ऐसी ही घटनाका उल्लेख है । इसलिए, हमारी रायमें, रजवाड़ोंकी प्रथाके अनुसार, नामका बदलना ही अधिक सम्भव है ।
देवपाल के समयका एक बौद्ध लेख भी गोश्रावामें मिला है। भागलपुरमें मिले हुए ताम्र-पत्रसे प्रकट होता है कि देवपालके समयमें उसका छोटा भाई जयपाल ही उसका सेनापति था, जिसने उत्कल और प्राग्ज्योतिषके राजाओंसे युद्ध किया था। देवपालका प्रधान मन्त्री उपर्युक्त गर्गका पुत्र दर्भपाणी था ।
६-विग्रहपाल (पहला )। यह देवपालके छोटे भाई जयपालका पुत्र और देवपालका उत्तरा-- धिकारी था । बड़ालके स्तम्भवाले लेखसे प्रतीत होता है कि देवपालके मन्त्री, दर्भपाणी,के पौत्र ( सोमेश्वरके पुत्र) केदारपाणीकी बुद्धिमानीसे गौड़के राजा (विग्रहपाल ) ने उत्कल, हूण, द्रविड़ और गुर्जर देशोंके राजाओंका गर्व-खण्डन किया था । यद्यपि उक्त लेखमें गौड़के राजाका
(१) Ind. Ant., Vol. XVIII, P. 309. (२) Ind. Ant., Vol. XV, p, 305. (३) Ep. Ind., Vol. II, p. 161. (५ ) Ep. Ind., Vol. II, p. 163.
१८७
For Private and Personal Use Only