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भारतके प्राचीन राजवंश
देवपालदेवके समयमें मालवेके आसपास मुसलमानोंके हमले होने लगे थे । हिजरी सन् ६३० ( ई० स० १२३२ ) में दिल्ली के बादशाह शमसुद्दीन अल्तमशने गवालियर ले लिया तथा तीन वर्ष बाद भिलसा और उज्जैनपर भी उसका अधिकार हो गया। उज्जैनपर अधिकार करके अल्तमशने महाकालके मन्दिरको तोड़ डाला और वहाँसे विक्रमादित्यकी मूर्ति उठवा ले गया । परन्तु इस समय उज्जैनपर मुसलमानों का पूरा पूरा दखल नहीं हुआ। मालवा और गुजरातवालोंके बीच भी यह झगड़ा बराबर चलता था । चन्द्रावतीके महामण्डलेश्वर सोमसिंहने मालवेपर हमला किया। परन्तु देवपालदेव-द्वारा वह हराया जाकर कैद कर लिया गया। यह सोमसिंह गुजरातवालोंका सामन्त था।
तारीख फरिश्तामें लिखा है कि हिजरी सन् ६२९ (ई० स० १२३१= वि० सं० १२८८ ) में शमसुद्दीन अल्तमशने गवालियरके किलेके चारों तरफ घेरा डाला। यह किला अल्तमशके पूर्वाधिकारी आरामशाहके समयमें फिर भी हिन्दू राजाओंके अधिकारमें चला गया था। एक साल तक घिरे रहनेके बाद वहाँका राजा देवबल ( देवपाल ) रात के समय किला छोड़ कर भाग गया। उस समय उसके तीन सौसे अधिक
आदमी मारे गये । गवालियरपर शमसुद्दीनका अधिकार हो गया । इस विजयके अनन्तर शमसुद्दीनने भिलसा और उज्जैनपर भी अधिकार जमाया। उज्जैनमें उसने महाकालके मन्दिरको तोड़ा । यह मन्दिर सोमनाथके मन्दिरके ढंग पर बना हुआ था। इस मन्दिरके इर्द गिर्द सौ गज ऊँचा कोट था । कहते हैं, यह मन्दिर तीन वर्षमें बनकर समाप्त हुआ था । यहाँसे महाकालकी मूर्ति, प्रसिद्ध वीर विक्रमादित्यकी मूर्ति और बहुत सी पीतलकी बनी अन्य मूर्तियाँ भी अल्तमशके हाथ लगीं । उनको वह देहली ले गया । वहाँ पर वे मसजिदके द्वारपर तोड़ी गई।
तबकात-ए-नासिरीमें गवालियरके राजाका नाम मलिकदेव और
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