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“भारतके प्राचीन राजवंश
" विन्ध्यवर्मनृपतेः प्रसादभूः । सान्धिविग्रहिकबिल्हणः कविः ।"
अर्थात्-बिल्हण कवि विन्ध्यवर्माका कृपापात्र था और उसका परराष्ट्र-सचिव ( Foreign finister ) भी था। __ आशाधरने भी अपने धर्मामृत नामक ग्रन्थमें पूर्वोक्त बिल्हणका जिक्र किया है।
आशाधर । ई० स० ११९२ में दिल्लीका चौहान राजा पृथ्वीराज, मुअजुद्दीन साम ( शहाबुद्दीन गोरी) द्वारा हराया गया। इससे उत्तरी हिन्दुस्तान मुसलमानोंके अधिकारमें चला गया तथा वहाँके हिन्दू विद्वानोंको अपना देश छोड़ना पड़ा । इन्हीं विद्वानोंमें आशाधर भी था, जो उस समय मालवेमें जा रहा।
अनेक ग्रन्थोंका कर्ता जैनकवि आशाधर सपादलक्ष-देशके मण्डलकरनामक गाँवका रहनेवाला था। यह देश चौहानोंके अजमेर-राज्यके अन्तर्गत था। मण्डलकरसे मतलब मेवाड़के मॉडलगढ़से है । इसकी जाति व्याघेरवाल ( बघेरवाल) थी । इसके पिताका नाम सल्लक्षण और माताका रत्नी था । इसकी स्त्री सरस्वतीसे चाहड़ नामक पुत्र हुआ। आशाधरकी कविताका जैन-विद्वान बहुत आदर करते थे। यहाँ तक कि जैनमुनि उदयसेनने उसे कलि-कालिदासकी उपाधि दी थी । धारामें इसने धरसेनके शिष्य महावीरसे जैनेन्द्रव्याकरण और जैनसिद्धान्त पढ़े। विन्ध्यवर्माके सान्धिविग्रहिक बिल्हण कविसे इसकी मित्रता हो गई । आशाधरको बिल्हण कविराज कहा करता था। आशाधरने अपने गुणोंसे विन्ध्यावर्माके पौत्र अर्जुनवर्माको भी प्रसन्न कर लिया । उसके राज्य-समयमें जैनधर्मकी उन्नतिके लिए आशाधर नालछा (नलकच्छपुर) के नेमिनाथके मन्दिर में जा रहा । उसने देवेन्द्र आदि विद्वानोंको
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