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मालवेके परमार।
पालकी तरफ था। कुछ समय बाद बल्लालदेव भी यशोधवल द्वारा मारा गया और मालवा एक बार फिर गुजरातमें मिला लिया गया। __बल्लालदेवकी मृत्युका जिक्र अनेक प्रशस्तियोंमें मिलता है । बड़नगरमें मिली हुई कुमारपालकी प्रशस्तिके पन्द्रहवें श्लोकमें बल्लालदेव पर की हुई जीतका जिक्र है । उसमें लिखा है कि बल्लालदेवका सिर कुमारपालके महलके द्वार पर लटकाया गया था । ई० स० ११४३ के नवंबरमें कुमारपाल गद्दी पर बैठा, तथा उल्लिखित बड़नगरवाली प्रशस्ति ई० स० ११५१ के सेप्टम्बरमें लिखी गई । इससे पूर्वोक्त बातोंका इस समयके बीच होना सिद्ध होता है। __ कीर्तिकौमुदीमें लिखा है कि मालवेके बल्लालदेव और दक्षिणके मल्लिकार्जुनको कुमारपालने हराया । इस विजयका ठीक ठीक हाल ई० स० ११६९ के सोमनाथके लेखम मिलता है। उदयपुर (ग्वालियर) में मिले हुए चौलुक्योंके लेखोंसे भी इसकी दृढ़ता होती है।
उदयपुर (ग्वालियर ) में कुमारपालके दो लेख मिले हैं। पहला वि० सं० १२२०(ई० स०११६३)का और दूसरा वि०सं० १२२२ (ई०स० ११६५) का। वहीं पर एक लेख वि० सं० १२२९ ( ई० स०११७२) का अजयपालके समयका भी मिला है । इससे मालूम होता है कि वि०सं० १२२९ तक भी मालवे पर गुजरातवालोंका अधिकार था । जयसिंहकी तरह कुमारपाल भी अवन्तीनाथ कहलाता था।
कहा जाता है कि पूर्वोल्लिखित ' उन' गाँव बल्लालदेवने बसाया था। वहाँके एक शिव-मन्दिरमें दो लेख-खण्ड मिले हैं। उनकी भाषा संस्कृत है। उनमें बल्लालदेवका नाम है। परन्तु यह बात निश्चयपूर्वक नहीं कही जा सकती कि भोजप्रबन्धका कर्ता बल्लाल और पूर्वोक्त बल्लाल दोनों
(१) Ep. Ind., Vol. VIII, P. 200. ( २ ) Ep. Ind., Vol. VIII, P. 200. (३) Ep. Ind., Vol. I, p. 296,
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