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मालवेके परमार ।
श्री जयसिंहने चढ़ाई की। यह जेजाकभुक्ति आजकल बुंदेलखण्ड कहलाता है । इन विजयोंसे जयसिंहको इतना गर्व हो गया कि उसने एक नवीन संवत् चलाने की कोशिश की ।
जयसिंहके उत्तराधिकारी कुमारपाई और अजयपालंके उदयपुर ( ग्वालियर ) के लेखोंसे भी कुछ काल तक मालवे पर गुजरातवालोंका अधिकार रहना प्रकट होता है । परन्तु अन्तमें अजमेर के चौहान राजाकी सहायता से कैसे निकल कर अपने राज्यका कुछ हिस्सा यशोवर्माने फिर प्राप्त कर लिया । उस समय जयसिंह और यशोवर्म्मा के बीच मेल हो गया था। वि० सं० १९९९ ( ई० स०११४२ ) में जयसिंह मर गयाँ । इसके कुछ ही काल बाद यशोवर्म्माका भी देहान्त हो गया ।
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० स०११३४ ), कार्तिक सुदी
अब तक यशोवर्मा के दो दानपत्र मिले हैं। एक वि० स० ११९१ ई० अष्टमीका है । यह नरके सांवत्सरिक श्राद्ध के दिन यशोवर्मा द्वारा दिया गया था । इसमें अवस्थिक ब्राह्मण धनपालको बड़ौद गाँव देनेका जिक्र है । वि० स० १२००, श्रावण सुदी पूर्णिमा के दिन, चन्द्रग्रहण पर्व पर, इसी दानको दुबारा मजबूत करनेके लिए महाकुमार लक्ष्मीवम्मीने नवीन ताम्रपत्र लिखा दिया | अनुमान है कि १९९९, कार्तिक सुदी अष्टमीको, नरवर्माका प्रथम सांवत्सरिक श्राद्ध हुआ होगा, क्योंकि विशेष कर ऐसे महादान प्रथम सांवत्सरिक श्राद्ध पर ही दिये जाते हैं । यद्यपि ताम्रपत्रमें इसका जिक्र नहीं है, तथापि संभव है कि वि० सं०११९०, कार्तिक सुदी अष्टमीको ही, नरवर्माका देहान्त हुआ होगा ।
( १ ) Ind. Ant., Vol. XVIII, p. 343 ( २ ) Ind. Ant., Vol. XVIII, p. 347 ( ३ ) Ind. Ant., Vol. VI, p. 213 ( ४ ) Ind. Ant., XIX. P. 351.
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